( १२३ ) डरा और दबा किसान च भी नहीं करता है। ब्रटाई की हालत यह है कि मँगफली जैसी कीमती और किराना चीजों की पैदावार का भी प्राधा हिस्सा ले लेते हैं । किसानों की गुलामी भी इसीके करते है। इसीलिये उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता अगर इस कर्ज के असह्य भार को उनके सिर से उठा फेंकने की बात की जाय । यदि उनकी छाती से यह चट्टान हटे तो जरा सांस लें। मुझे यह बात मालूम तो थी हो। इसीलिये मैंने कहा कि पड़ोस में ही कांग्रेस हो रही है। उसका दावा भी है कि वह गरीबों और सताये गये लोगों की ही संस्था है। श्री बल्लभ भाई अपने को किसानों का नेता कहते भी हैं। और आज तो इस बम्बई प्रान्त में कांग्रेस के ही मंत्री शासन चला रहे हैं, ऐसा माना जाता है। उन्हीं की मर्जी से कानून बनते हैं । इसलिये हरिपुरा में लाखों की तादाद में किसान जमा होके साफ साफ कह दें कि इस मनहूस कर्ज ने हमारी रीढ़ तोड़ डाली । हमने एक के दस अदा किये । फिर भी साहुकार को ब्रही (चौपड़ी) में घीस बाकी पड़े हैं। हमारी जमीन और इज्जत इसीके चलते चली गई । हम गुलाम भी बन गये। यहाँ एक नये प्रकार के “साहुकार जमींदार" पैदा हो गये। इसलिये कांग्रेस के मंत्री लोग कृपा करके इन साहुकारों के सभी कागज-पत्र अपने पास मँगवा लें। फिर या तो उन्हें बम्बई के पास के ही समुद्र में डुबा दें, या नहीं तो होली जला दें। और अगर हुक्म दें तो हमी लोग उन्हें लेके ताती नदी में ही डुवा दे। नहीं तो हमारा जो जीवन भार बन गया है वह खत्म हो जायगा। हमने देखा कि इन शब्दों के सुनते ही किसानों के चेहरे खिल उठे। उसके बाद सभा का काम पूरा करके हमने हरिपुरा पहुँचने की सोची। खयाल अाया कि मोटर लारियों तो बराबर दौड़ रही हैं। हम लोग पल मारते पहुँच जायगे। फिर वहीं से सड़क पर आये और लारियों की इन्तजार करने लगे। वटों योंही बीता । बीच में बीसियों लारिया आई और चली गई। हमने हजार कोशिश की कि रके, मगर एक भी न
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