१६ सन् १६३८-३६ की घटना है। हरिपुरा कांग्रेस के पहले और उसके बाद भी मुझे गुजरात में दौरा करने का मौका किसान-आन्दोलन के सिलसिले में लगा था । हरिपुरा के पहले गुजरात के हमारे प्रमुख किसान कर्मी श्री इन्दुलाल याशिक ने अपने सहकर्मियों की सम्मति से तय किया था कि कांग्रेस के अवसर पर किसानों का एक विराट जुलूस निकाला जाय और मीटिंग भी हो। फैजपुर के समय से ही यह प्रथा हमने चलाई थी जो अब तक लगातार जारी रही है। हमने भी उनकी राय मानी था । इसीलिये निश्चय किया गया था कि उसके पहले मेरा दोरा हो जाय। क्योंकि वहाँ तो अभी किसान-आन्दोलन को जन्म देना था। अब तक तो वह वहाँ पनप पाया न था । गांधी जी का वह प्रान्त जो ठहरा । सो भी टेठ बारदौली के पड़ोस में ही कांग्रेस हो जाने जा रही थी। सरदार बल्लभ भाई का तो हम पर प्रचंड कोप भी था। यह भी खबर अखबारों में छप चुकी थी कि कांग्रेस के अवसर पर ही अखिल भारतीय खेत मजदूर सम्मेलन श्री बल्लभ भाई की अध्यक्षता में होगा । यह खेत मजदूर अान्दोलन किसान- सभा का विरोधी बनाया जा रहा था। बिहार तथा ग्रान्ध्र अादि प्रान्तों में इस बात की खुली कोशिश पहले ही की जा रही थी कि खेत मजदूरों को उभाड़ कर या कम से कम उनके नाम पर ही कोई आन्दोलन खड़ा करके बढ़ते हुए किसान-यान्दोलन को दबाया जाय । खुलेअाम जमींदारों के श्रादमियों और पैसे के द्वारा यह बात की जा रही थी । हमें इसका पता था। मगर हमें इसकी पर्वा जरा भी न थी । हम बखूबी जानते थे कि ये बातें टिक नहीं सकती हैं। फिर भी सजग होके किसानों का खासा जमावड़ा हरिपुरा में करना जरूरी हो गया। इसीलिये दौरे की जरूरत
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