the Marwari is the proprietor. It is a zamindari settlement; but it is a zamindari settlemnt strip-ped of all the safeguards which under such a settlement in Upper India are thought indispen-sable to the tenant. The proprietor is irrespon- sible,' the tenant un protected. It promises to become not a ryotwari but a Marwarisettlement."
उत्तर भारत के बिहार-बगाल की सम्मिलित सीमा का सथाल आन्दोलन भी, जो १८५५ की ७ जुलाई से शुरू हुआ, किसान-आन्दोलन ही था । मील नेताओं के अग संरक्षक ही तीस हजार थे। बाकियों का क्या कहना ! संथालों के घी, दूध और अन्नादि को बनिये मिट्टी के मोल लेकर नमक, वस्त्र खूब महँगें देते थे। इस प्रकार उनकी सारी जमीन, बर्तन और औरतों के लोहे के जेवर तक ये बनिये लूट लेते थे, ठग लेते थे। मिस्टर हन्टर ने "देहाती बंगाल का इतिहास" में लूट का विशद, पर हृदय-द्रावक, वर्णन किया है। और जब पुलिस वालो ने भी इन बनियों से घूस लेकर उन्हीं का साथ देना शुरू किया, तो फिर इन पीड़ित संथालों के लिये विद्रोह ही एक मात्र अस्त्र रह गया था। उनने उसी की शरण ली। इस तरह हम १८३६ से चलकर १८७५ तक आते है और इसी के बीच में वह संथालों का किसान-आन्दोलन भी या जाता है। बल्कि मालाबार वाले १९२० के विवाह को लेकर तो हम असहयोग-युग के पूर्व तक पहुँच जाते हैं ।
हमें एक चीज इसमें यह भी मिलती है कि धीरे-धीरे यह आन्दोलन एक संगठित रूप की ओर अग्रसर होता है। मोपलों के १९२० वाले संगठन का उल्लेख हो चुका है। दक्षिणी विद्रोह में भी १८३६.५३ वाले मोपला विद्रोह की अपेक्षा एक तरह का सगठन पाया जाता है जिसके फलस्वरूप वे आग की तरह बम्बई प्रेसीडेंसी के एक छोर से दूसरे छोर तक बहुत तेजी से पहुँच जाते हैं, ऐसा सर विनोट ने तथा औरों ने भी