पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१६७

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( ११२) के बाद भी उसकी एक बात भी न चल सकी। जो खेत उसे मिलना चाहिये खामखाह, वह मिल न सका । उसने कई दृष्टान्त इस बात के सुनाये कि न तो बकाश्त जमीनें लोगों को मिली और न लगान ही घटा । फिर बोला कि, "सुना था, सब कुछ हो जायगा । वोट भी इसी आशा पर जान पर खेलकर दिया था। मगर यह तो धोखा ही निकला," आदि आदि। उसके मुंह से जो बातें धड़ाके से निकलती थीं मैं उन्हें गौर से सुनता था और उसकी भावभंगी भी देखता जाता था। मालूम होता था किसी बहुत बड़े धोखे से उसकी आँखें खुली हैं और झूठी प्रतिज्ञा करने वालों को-खासकर कांग्रेस मंत्रियों को-कच्चा ही खा जाना चाहता है । गोकि बाहर से उसके इस भयंकर क्रोध का पता नहीं चलता था। मगर भीतर ही भीतर यह आग जल रही थी यह मुझे साफ झलकता था। वह महान् "विस्मय में गोते लगा रहा था कि ऐसे लोग भी झूठी बातें करते हैं । उस समय उसका चेहरा देखने ही लायक था। मुझे इसीलिये वह नहीं भूलता है। उसकी बातें सुनने के बाद मैंने उससे साफ़ साफ़ कबूल कर लिया कि 'हाँ भई, धोखा तो हुआ । यहाँ तो ऊँची दूकान के फोके पकवान ही नजर आये।' इसके बाद मैंने व्योरे के साथ सारी बातें उसे सुनाई और समझाया कि बकाश्त की वापसी और लगान की कमी के नाम पर जो कानून अभी बने हैं वे कितने कच्चे हैं और केवल रुपये वाले जमींदार "किस प्रकार बाजी मार ले जाते हैं। मैंने उसे खासा लेक्चर ही सुना दिया। क्योंकि मेरा भी दिल जला ही था। उसके सामने मैंने इस बात की बहुतेरी मिसालें भी पेश की और कहा कि धोखा तो दिया ही जा रहा है। इस पर उसने चटपट सुना दिया कि "आप ही ने तो कहा था कि कांग्रेस को वोट दीजिये । हम क्या जानते थे कि कौन क्या है ? अापने जैसा कहा हमने वैसा हो किया " इस पर मैं ठक् सा हो गया । मेरे पास इस बात का तो कोई उत्तर था नहीं । वह बातें तो सरासर सच्ची कह रहा था। किसानों ने तो मेरे हो कहने से अपनी मनों के खिलाफ कांग्रेस