पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१६२

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१८ ठीक तारीख और साल याद नहों। बिहार की ही घटना है। सो भी पंटना जिले की ही, बिहटा से दक्षिण मसौढ़ा परगने के नामी जालिम जमींदारों की जमींदारी को । भरतपुरा, धरहरा के जमींदारों से कोई भी जमीशर इस बात की तालीम पा सकता है कि जुल्म कितने प्रकार के और कैसे किये जा सकते हैं । खूबी तो यह कि सरकार और उसके कानूनों की एक न चले और किसान की कचूमर भी निकल आये। अब तो किसान-सभा के प्रताप से जमाना बदल गया है और उन्हीं जमींदारों को वहीं के पस्त किसानों ने नाकों चने चबवा दिये हैं। जो जमींदार भावली लगान की नगदी करने में आकाश-पाताल एक कर डालते थे, क्योंकि भावली (दानावंदी) के चलते उन्हें पूरा फायदा था । उससे किसान तबाह भी हो जाते थे । वही आज मखमार के नगदी करने को उतारू हो गये। किसानों ने थोड़ी सी हिम्मत, समझदारी और दूरदेशो से काम लिया और वे जीत गये । किसानों की सचाई और ईमानदारी से वेजा फायदा उठा के उन्हें ही तंग करने वाले जमोदारों के साथ कैसा सलूक करना ठीक है यह बात किसानों के समझ में आ गई और काम बन गया। उनने समझ लिया कि सबके साथ युधिष्ठिर और धर्मराज बनना भारी भूल है। इतने ही से पासा पलट गया। हाँ, तो धरहरा के ही एक जमींदार की कोठी ऐन पक्की सड़क पर ही अछुवा मौजे में बनी है। मौजा उन्हीं हजरत का है। वहां के किसान अधिकांश कोइरी हैं। यह एक पक्की किसान जाति है। कोहरी लोग सीधे-सादे, प्रायः अपढ़ और बड़े हो ईमानदार होते हैं । झगड़ा करना तो जानते ही नहीं, सो भी जमींदारों या उनके मामूली अमलों तक के साथ । मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि मनुष्यों में यह जाति गो. , ,