पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१५६

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- १७ सन् १६३८ ई० की बरसात गुजर चुकी थी। याश्विन या कार्तिक का महोना होगा। अभी तक देहाती सड़कों को मरम्मत न हो सकी थी। किसान रबी की फसल बोने में लगे थे। रास्तों में कीन और पानी को फमी न थी। ठीक उसी समय श्री विश्वनाथ प्रसाद मर्दाना ने बलिया जिले में हमारे दौरे का प्रोग्राम बनाया । हमें युक्तप्रान्त के कई जिलों में दीस करना था । श्री हर्षदेव मालवीय (इलाहाबाद) ने उनका प्रा किया था। बदकिस्मती से कहिये या खुश-किस्मनी से, बलिया जिले के लिये केवल एक हो दिन का समय मिला था और मर्दाना ने एक ही दिन में एक छोर से दूसरे तक तीन चार मीटिंगों का प्रबन्ध किया था। मोटर से चलना था। पर सद के तो न मोटर के बस की थी और न मदांना फे. ही पानी की। उन सदकों के ही बल पर चार मीटिंगी का रन्जाम फरमा खतरे को गोल लेना था। हुश्रा भो ऐसा। मगर माना तो महानाही करे। उनमें जोश और दिमत काफी । मोदीदने नरे का सोच- विचार जरा कम करते हैं। जो होगा से देखा जायगासी माल रक्षा है। इसीलिये खतरे के साथ खेलने में जाना है। मारे कार्यकत्तानों में शामतीर ने जवाब देरीमा आनाकात नहीं जितना होना नागि और नरमत शान्दोलन निशानी है। देश की समानों के प्रबन्ध मिलमिले में जान को और जवादे गाने को की वारनाफ गैर जयाग्देही देन के मन में माना भी चार बार हमारी शानदीमान दुनार तो सरिता स्टेशमा मनकामन वाटर चोर गिरो मानकर