पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१३२

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( ७७ ) तो कांग्रेस के अलावे और किसी संस्था को किसान खुद पसन्द नहीं करते। जन-यान्दोलन के बारे में ऐसा खयाल कोई नई बात न थी। यह सनातनधर्म है। न्याविर कांग्रेस को भी तो सरकारी अधिकारी और दकियानूस दल के लोग पहले ऐसा ही करते थे। इसलिये हमने और हमारे साथियों ने सोचा कि यदि बनमनखी जायगे तो कांग्रेस के प्रमुव लीडरों से प्रत्यक्ष संवर्ग हो सकता है। हम जानते ये कि स्वतंत्र किसान-सभा बनाने और जमींदारी मिटाने का मवाल नहीं उठेगा । खासकर हमारे रहने पर । एमो हालत में संबई अनिवार्य है। हमार। गौजूदगी में भी यदि ये प्रश्न न उठे तो राजनीतिक-सम्मेलन से अलग किसान-सम्मेलन करने के कुछ मानी नहीं । और अविरत में वहीं के मजलूम किसान समझेंगे क्या ? यही न कि हम भी जमींदारों से उरते है, उनके दलाल है और सिर्फ इसीलिये किसान-सभा बना रखी है। यह तो हमारे लिये डूब मरने की बात होगी । इसलिये हर पहलू से साचने पर यही तर पाय कि वझे न जाना ही अच्छा । हमने यह भी सोच लिया कि यदि इतने पर भी वो जमींदारी मिटाने और बिहार प्रान्तीय किसान सभा की छत्र-छापा में उस जिले में किसान संगठन करने के सवाल उठे तो यह हमारी सबसे बड़ी जीत होगी। तब तो हमारे विरोधियों को पर कहने फा मोका हो न मिलेगा कि किसान सभा के नाम पर दमों लोग ज्यामवाद टोग बड़ाते फिरते हैं-किमान यह सब नहीं चाहते । तब तो दुनिया को पोखें खुनने का मौका मिलेगा कि किसानों का जरूरत ने ही किमानसमा कप किया है। और अगर वे मराज उठे और बहुमन ने एनरे पक्ष में हो सर दो, जैसा कि हमारा दृढ़ विश्वान शतब तो वेहा को पारसममिरे । तब नो हमारी दूनो जोत समझ जागो । बम वह िदने पर जो शायद लोगों को दाने और मुमत से काम लेगान रहने पर तो लोग के पारने विचारों से पूरा काम लेंगे। बगल में कमी कमी नेवानी देशी, उनका दान जिसे वे लोग मकदारी करते हैं, उनकी माला- जनता का बहा नुकसान करता है। इनके रनवे उन दिन दिमाग