पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१२६

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( ७१ ) - । जाती है। नापने वाला वही अमला होता है। कोई सरकारी श्रोवरसिंगर या अमीन नहीं पाता। और अगर नाप में ज्यादा जमीन कुछ भी निकली तो किसान पर श्राफत अाई। अमले नाप-जोख में गड़बड़ी करके भी ज्यादा जमीन साबित कर देते हैं । इस प्रकार किसान पर देत पास का केस चलाया जाता है । यदि उसने डर से अमलों की पूजा-प्रतिष्टा पहले ही कर ली और जमींदार को भी कुछ नजर या सलामी दे दी तब तो खैरियत । नहीं तो लड़ते लड़ते तबाही की नीयत पाती है। इस "टरेस" के करते मैंने किसानों में एक प्रकार का अातंक वहाँ देखा । पोछे तो भागलपुर, दरभंगा यादि में भी यही बात मिली। यो तो सेकड़ों प्रकार की गैर कानूनी वसूलियाँ समय समय पर चलती ही रहती हैं । मगर दो एक तो वहाँ की खास हैं। मवेशियों की खरीद-विक्री पर खुद किसानों से एक प्रकार का टैक्स लिया जाता था और शायद अब भी हो। और गल्ले की विक्री पर भी और इस प्रकार उनके नाको दम थी। मगर पुनाही खर्च के नाम से जो वसूली होती है वह बड़ी ही दुरी है इसी प्रकार कोसी नदी के जंगलों में सूअर या हिरन का शिकार खेलने के लिये जब कभी महाराजा का, उनके दोस्तों का या उनके मैनेजर का कैम देहातों में जाता है तो किसानों से बकरी, बकरे, दूध, घी, मुर्गी, मुर्गे कौरद की शकल में सैकड़ों चीजें वसूल की जाती हैं । यो कहने के लिये शायद उन चीजों की कीमत हिसार में लिखी जाती है। मगर गरीम किसानों को मिलती तो है नहीं। और अगर कहों कभी एकाध को मिली भी, तो नाम- मात्र को ही। बाकी तो अमलों के ही पेट में चली जाती है। दा भी होता है कि दो की जगह चार बकरे मँगाये जाते हैं श्रीर उनमें कुछ फैन्य गर्न में लिखे जाते ही नहीं। उन्हें तो ऊपर ही ऊपर वे अमले उसादी लेते हैं। फिर उनका खर्च मिले तो फैले १ कुम्हारों से मुक्त वर्तन धीर फारों से वेगार में फाम करवाना तो आम बात है। दूसरे गरीब भी इसी प्रकार सरते रते हैं। पुनादी की बात यों है कि साल में एक बार महाराजा फे दर मकिल ओक्ति में बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है और वन-पूजा होती है। 3