१० संन् १६३५ ई० की मई का महीना था। उसी समय पूर्णियां जिले में बरसात शुरू हो जाया करती है । कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता पं० पुण्या- नंन्द झा पूर्णियां जिले के अररिया सब डिविजन के जहानपुर में रहते हैं । उनके ही आग्रह और प्रबन्ध से उस जिले का पहले पहल दौरा करने का मौका मिला । कटिहार स्टेशन से ही पहले किशनगंज जाने का प्रोग्राम श्रा । कटिहार में डा० किशोरीलाल कुंडू के यहाँ ठहर के किशनगंज की ट्रेन पकड़नी थी। किशनगंज पूर्णियां जिले का सब डिविजन और बिहार प्रान्त का सबसे अाखिरी पूर्वीय इलाका है । यों तो उस जिले में ७५ फीसदी मुसलमान ही बाशिन्दे माने जाते हैं। मगर किशनगंज में उनकी संख्या ६५ प्रतिशत कही जाती है। किसानों के आन्दोलन के सिलसिले में ऐसे इलाके में जाने का यह पहला ही अवसर था। मुझे इस बात की बड़ी प्रसन्नता थी। माजी कटिहार में ही साथ हो लिये और बरसोई होते हम किशनगंज पहुँचे । वहाँ के प्रसिद्ध कांग्रेस की श्री अनाथकांत वसु के यहाँ हम लोग ठहरे । पहली सभा वहीं शहर ही होने वाली थी। सभा हुई भी। मगर वृष्टि के चलते जैसी हम चाहते थे हो न सकी। इसका पश्चात्तार सत्रों को था। मगर मजबूरी थी किशनगंज में दोई दिन ठहरने का हमारा प्रोग्राम था। तो भी अनाथ बाबू ने भीतर ही भीतर तय कर लिया कि मुझे एक दिन और ठहरा के शहर में फिर सभा की जाय जो सफल हो । उनने देहात में भी खबर मेज दी और इसका खासा प्रचार किया । जब में तीसरे दिन चलने के लिये तैयार था तभी कुछ लोगों के डेप्युटेशन ने हठ करके मुझे रोक लिया और खासी अच्छी सभा कराई। मुझे भी माजी के साथ देहात में होके ही उनके घर (जदानपुर) जाना था।
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