वधियों की उत्पत्ति मेरी बहुत दिन से इच्छा थी कि मैं इस जाति का पुराहत संग्रह करू परंतु मुझे इस में कोई सहायक न मिला और जिन २ मित्रों ने सुझ से पु- राहत देने कहा था वे इस विषय में असमर्थ हो गए और इसी से मेरा भी उत्साह बहुत दिनों तक सन्द पड़ा रहा परन्तु मेरे परम मित्र ने इस विषय में मुझे फिर उत्साहित किया और कुछ सुझे ऐसी सहायता भी मिल गई कि मैं फिर से इस जाति के समाचार अन्वेषण में उत्सुक हुा । ____लाहोर निवासी श्रीपण्डित राधालग जी ने इस विषय में सुके बड़ी स- हायता दी और वैसी ही कुछ कुछ सहायता श्रीसुनशी बुधसिंह के मिहिर प्रकाश और श्रीयुत शेरिङ्ग साहब के जाति संग्रह से मिली। इस समय में प्रायः बहुत जाति के लोग अपनी अपनी उन्नति दर्शन में प्रवृत्त हुए है जैसा दूसर (जिन के वैश्वत्व में भी सन्देह है क्योंकि उनके यहां फिर से कन्या का पति होता है ) अपने को कहते हैं कि हम ब्राह्मण हैं। कायस्थ (जो शूद्रधर्म कमन्साकर को रीति से संकर शूद्र है ) कहते हैं कि हम क्षत्रिय हैं और जाट लोगों में भी मेरे मित्र बेसवां के राजा श्री ठा- कुर गिरिप्रसाद सिंह ने निश्चय किया है कि वे क्षत्रिय हैं तो इस दशा में इस आर्य जाति का पुरावृत्त संग्रह होना भी अवश्य है, जो सुख्य आर्य जाति के निवास स्थल पंजाब और पश्चिमोत्तर देश में फैली हुई है और जिस में सर्बदा से अच्छे लोग होते पाए हैं। हमारे पूर्वोता आर्य शब्द के दो बेर को प्रयोग से कोई यह शंका न वारे कि देश के पक्षपात से मैंने यह आग्रह से आदर का शब्द रक्खा है क्योंकि आर्य जाति को निवास का मुख्य यही देश है और यहीं से धार्य जाति के लोग सारे भारतवर्ष में फैले हैं यह प. गन्देजी हिन्दुस्तान के इतिहासों के पाठ से स्पष्ट हो जायगा । हमारे एक मित्र से इस बात का मुझ से बड़ा विवाद उपस्थित हुआ था, वह कहते थे कि पंजाब देश अपवित्र है क्योंकि महाभारत में कार्ण पब के प्रारम्भ में शल्य राजा से कर्ण ने पंजाब देश को बड़ी निन्दा की है और वहां के बहुत बुरे
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