पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/८१

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[ १० ] हो कि तीसरे सग के १२ श्लोक में भी एक जगह विष्णु का नाम गोबिन्द कहा है “ गोबिन्द कर निस्मृता ” और गोबिन्द श्रीक्षण का नाम तब पड़ा है जब गोबर्द्धन उठाया है यह विष्णुपुराणादिक से सिद्ध है यथा “ गोविन्द इतिचाभ्यधात् ” तो इस से भी हमारी बालकांड वाली युक्ति सिद्ध हुई। (८४ सर्ग शोका ८) छन्दोविदः पुराणज्ञान् इस वाक्य में पुराणों का वर्णन किया है। पुराणनैश्च महात्मभिः इत्यादि वाक्यों में और भी कई स्थानों पर पुराणों का वर्णन है और पुराणों की अनेक कथा भी इस काण्ड में मिलती है इस से यह निश्चय होता है कि उत्तरकाण्ड के बनने के पहले पुराण सब बन चुके थे। पुराणों के विषय की बहुत सी शंकाएं काल क्रम से मिट गई। जिन पुराणों के विलायती विद्वानों चार पांच सौ बरस का बना बतलाया था उन की सात सात सौ बरस की प्राचीन पुस्तके मिलीं। लोग भागवत ही को बोपदेव का बनाया कहते थे किन्तु चन्द के रायसे में भागवत का वर्णन मिलने से और प्राचीन पुस्तकों से यह सब बातें खंडित हो गई। उत्तरकाण्ड से मालूस होता है कि अयोध्या काशी और प्रयाग ये तीनों राज्य उस समय अलग थे और उस समय हिन्दुस्तान में तीन सौ राज्य अ- लग थे। ___ इसी काण्ड के चौरानवे सर्ग में यह लिखा है कि उत्तरकाण्ड भार्गव ऋषि ने बनाया है। यह भी एक आर्य की बात है इस वाक्य से तो अंगरेज़ी विद्वानों का सन्देह सिद्ध होता है। इति एकश्लोकी रामायद्याम् । आदी रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं काञ्चनम्, वैदेहीहरणं जटायुसरणं सुग्रीवसम्भाषणम् । वालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लकापुरीदाहनस्, पश्चाद्रावणकुम्भकर्ण हननम् एतद्धि रामायणम् ॥