पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/७९

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[ ८] ६४ वें सर्ग के २४ श्लोक में लिखा है कि हनुमान जी राक्षसों के सिर इस तरह से तोड़ २ कर फेकते थे जैसे यंत्र से ढेले छूटें इससे ऊपर जहां हम यंत्रों का वर्णन कर आए हैं उससे लोग समझे कि वह निहान्देह कोई ऐसी वस्तु थी जिसले गोली या कंकड़ पत्थर छोड़े जाते थे। लंकाका राड-(३ सर्ग १२ श्लोक) (३ सर्ग १३ श्लोक ) ( ३ सर्ग १६ श्लोक) (३ सर्ग १७ श्लोक ) ४ सर्ग २३ श्लोक ) (२१ सर्ग लोक अन्तका) ( ३८ सर्ग२६ श्लोक (६० सर्ग ५४ श्लोक) ( ६१ खर्ग ३२ श्लोक ) (७६ सर्ग ६८ लोक ) (८६ सर्ग २२ श्लोक ) इन श्लोकों में यंत्र और शतन्त्री का वर्णन है । ___ यंत्र और शतनी ये रामायण में किस२ प्रकार से वर्णन की गई हैं यह जपर के श्लोकों के देखने से प्रगट होगा । इन दोनों के विषय में हमें कुछ विशेष कहना नहीं है। क्योंकि हमारे पाठकों पर आप से आप यह प्रगट होगा कि यंत्र और शतन्नी का कोई रूप रामायण से हस ठीक नहीं कार सत्तो। ____ पत्थर ढोने की कल किसी चाल की वाल्मीकि जी के समय में अवश्य रही होगी। और किवाड़ भी किसी चाल की काल से बंद किये जाते होंगे। यंत्र बहुत ऊ'चे २ भी होते थे जैसा कि कुम्भकर्ण की उपसा में कहा गया है । शतघ्नी फौलाद की बनती थी और हचों की तरह लंबी होती थी और केवल किलेही पर नहीं रहती थी परन्तु लड़ाई में सो लाई जाती थी। इन बातों से हमारा यह कहना तो ठीक ज्ञात होता है कि आगे कल * अ- वण्य थी पर शतघ्नी विस चाल का हथियार था वह हम नहीं कह सकते। ११५ स्वर्ग ४२ श्लोक में राजा भोज के बेटे के नाम से जो सिंह और रीझ की काहानी प्रसिद्ध है वह ठीक २ यहां कही गई है।

  • महाभारत की टीका से युद्ध में नीलकांठ चतुर्धर ने यंत्र का अर्थ अग्नि

यंत्र लिखा है पर राजा राधाकान्त ने अस्वियंत्र और अन्यत्र इन दोनों श- व्दों का अर्थ बन्दूक किया है ( "कासान बन्दूक इतिभाषा") और दारयंत्र का अर्थ कल लिखा है। सहाभारत में एक जगह और लिखा है "यंत्रस्यगुण दोषो न विचायौँ मधसूदन । अहं यंत्रो अवान् यंत्री न से दोषी नमे गुणः । विजय रक्षित ग्रन्थ में लिखा है अयः कंटक संछना शतघ्नी सहती शिमा,, अर्थात् लोहे के कांटों से छिपाई हुई सिल का नाम शतघ्नी है। मेदिनो कोष में करंज भी इसका नास है।