पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/६७

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[ ४] परिवार शहाबुद्दीन ने सन् १२८८ में मारा केवल एक पुत्र रायली बच गया को चित्तौर में पाला गया और जिसने कैंसरीर में राज स्थापन किया। राय- सो के कोलन राय हुए जिस ने मध्यदेश में पसारों का राज्य किया और उन के बङ्गदेव हुए जो हुन के राजा हुए और मैनाल लोगों पर प्रभुत्व किया बाव बङ्गदेव से बंश परम्परा में और भेद नहीं है केवल समर सिंह के पुत्र हर राज (हाराराज जिससे हाड़ा बंश चला) प्रिन्सिप साहब बंशावन्ती में विशेष सानते हैं। बंदीवान्तों के सत से बड़देव ने (सन १३४१ई० में) बैवावदा में राज किया और इनके पुत्र राव देव सिंह ने बूंदी में राज स्थापन किया और अपने पुत्र देव सिंह ( संबत १२८८ ) को बूंदी राज देकर चले गए। यही राव देव नोधी लोगों के दरवार में बुलाए गए जो प्रिन्सिप साहब के मत से अपने पुत्र हरराज को राज देकर चले गए बूंदी परम्परा में हरराज का नाम नहीं है इस से सम्भव होता है कि हरराज और समरसिंह दोनों राव देव के पुत्र हैं, हरराज ने कुछ दिन राज किया फिर ससरसिंह ने भीलों को जीता था। समरसिंह के पीछे क्रस से ये राजा हुए। राव रनपाल सिंह (नापा जी) संबत १३३२ राव हम्मीर (हामाजी वा हासूजी ) सं० १३४३ राव बरसिंह वा वीरसिंह सं० १३८३ राव बैरीशल्य वा बैरीसाल वा बीरजी सं० १४५० (1P. 4190. A. D. G.) राव सुभांडदेव वा बांदा जी सं० १४८० इनके समय में वडा कान्ल पड़ा (ई०१४८७) और ससरकन्दी अमरकन्दी नामक दो भाइ- या ने इनको राज से उतार वार बारह बरस राज्य विाया राव नकायण दास पिताका राज्य अपने चचा लोगों से लिया । राव सूरजमल ने संबत १५८४ 1538. A.D.) भट्ट लोगों को सत से महाराना रत्नसिंह जीका बध किया किन्तु जलप प्रिन्सिप साहब के सत से महाराना ने इन्हें मारा इससे सम्भव होता

  • कि इन दोनों राजाओं में ऐसा घोर बैर हुआ कि दोनों परस्पर मृत्यु के

कारण हुए। राव राजा सुरतानजी सं० १५८८ [1537 A. D. 1 यह पाग- न थे इस से पंचों ने इनवो राज से अलग कर के नरायनदास के पुत्र अर्जुनरा- व को राना किया। इनके बहुत थोड़े ही समय राज के पीछे चितोर की लड़ाई में सारे जाने से राजावली में इन को गिनती नहीं हुई। राव राजा सुरजन जी सं० १६११ | 1560 A. D.] इन्हों ने महाराजाधिराज अकबर से काशी और चनार पाया और काशो में राजमन्दिर बसाया। राव राजा भोज सं० १६४२ इन के समय से कोटा और बूंदी का राज अलग हुआ।