[ ३ ]. हुए उनमें से चर्तुभुज जी (चौहान वा चहुमान ) से १५६ पीढी में भीस- चन्द्र राजा हुआ उस का पुत्र भानुराज राक्षसों ( यवनों) की लड़ाई में मारा गया तब आशापुरा देवी ने कृपा करके भानुराज की अस्थि एकात्न करके जिला दिया और तब से भानुराज का नाम अस्थिपाल हुआ । अस्थिपाल को पीछे क्रम से पृथ्वी पाल, सेनपाल, शत्रु शल्य, दामोदर, नृसिंह, हरिबंश हरि. जश, सदाशिव, रामदास, रामचन्द्र भागचन्द्र, रूपचन्द्र सण्डन जी (जिस ने दक्षिण में मांदलगढ़ बसाया) आत्माराम, आनन्दराम, रावहसीर, राव सुमेर, राव सरदार, राव जोधराज, राव रत्न जी, राव कोल्हण जी, राव आशुपाल, राव विजयपाल और राव बङ्गदेव नी हुए।" रात्र बङ्गदेव से भट्टों को और प्रिन्सिप साहब की. बंशावली एक है। प्रिन्सिप साहब के मत से अनुराज ने भासी वा हांसी का राज किया । उसके पीछे इष्टपाल वा इष्ठ पाल (शायद अस्थिपाल यही है ) ने १०२४ ई० में असीर गढ़ में राज किया। उसका चण्डकर्ण वा कर्णचन्द्र उस का लोकपाल और उस का हम्मीर हुा । इस हम्मीर का पृथ्वीराज रायसे में भी जिक्र है और पृथ्वीराजहीके युद्ध में यह ११८३ ई० में मारा गया । हम्मीर के पीछे क्रम से काल काल काणे, महामन्द ( महामत्त ) राव बच (राववत्स.) और रावचन्द्र हुए। रावचन्द्र का घास का पुतला बना कर कुंड में डाला । जिस से मार मार कहता हुआ भाला लिये हुए एक पुरुष निकला जिस को ऋषियों ने प्रमार नाम देकर धार और उज्जैन का देश दिया । उसी भांति ब्रह्मा ने बेद और खग लिये हुए एक पुरुष उत्पन्न किया, एक चुलुक ( चुल्लू जल से जी उठने से इसका नाम चालुक्य हुआ, और अन्हल पुर इसकी राजधानी हुई । रुद्र ने तीसरा क्षती गंगाजल से उत्पन्न किया यह धनुष लिये काला और कुरूप था इस से इस का नाम परिहार रख कर पर्बतों और बनों की रक्षा इस को दी। अन्त में विष्णु ने चार भुजा का एक मनुष्य उत्पन्न चतुर्भुज नामक किया इस की राजधानी अकावती (गढ़ मंडल) हुई । इन्हीं चार पुरषों से कम से पंवार सोलंखी परिहार और चौहान बंश हुए । ___प्राचीन काल में चौहान लोगों का सामवेद, पञ्च. प्रवर, मधु (मध्य १) शाखा वत्सगोत्र, विष्णु, ( श्रीकृष्ण ) वंश होने से सोमवंश, अम्बिका देवी, अर्बुद अ- चलेश्वर शिव, भृगुलक्षण विष्णु और काल भैरव क्षेत्रपाल थे।
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