बूंदी का राजबंश। बंदो का राजबंश चौहान क्षत्रियों से है। इस बंश का मूल पुरुष अन्ह लं चौहान प्रसिद्ध है । भट्ट लोगों के मत से चौहान का शुद्ध नाम चतुर्भुज है। अन्हल अनल शब्द का अपभ्रंश है क्योंकि अनल अग्नि को कहते हैं और प्राव के पहाड पर जो चार क्षत्री बंश उत्पन्न किए गए वे अग्नि से उत्पन्न किए गए थे। नेम्सप्रिसिप साहब को संदेह है कि पार्थिअन * (पार्थिव ?) Parthian Dynesty से यह बंश निकला है। उन्ही के मत के अनुसार ईसा मसीह से ७०० बर्ष पूर्व अनल ने गढ़मंडला में राज स्थापन किया । अनल के पीछे सुवाच और फिर मल्लन हुअा (जिस ने मनी बंश चलाया ?) फिर गलन सूर हुअा। यहां तक कि ईसवी सन् १४५ में (विराट का सं० २०२) अजयपाल ने अजमेर बसा कर राज किया। इस के पूर्व ८०० बरस और पीछे ५०० बरस ठीक ठीक नामावली नहीं मिलती। विल्फर्ड याहब के मत के अनुसार सन् ५०० ई. के अन्त तक सामन्तदेव, महादेव, अजयसिंह [अजयपाल ? ] बीरसिंह, बिन्दुसूर और बैरी विहंड नराजाओं के नाम क्रमसे मिलते हैं। यदि अजयपाल से सिलाकर यह क्रम सानाजाय तो बैरि- विहंड तक एक प्रकार का क्रम मिलेगा किन्तु दोलाराय [दल्लसराय? जिस से सन् ६८४ ई० में मुसलमानों ने अजमेर छीना उस के पूर्व दो सौ वरस के लगभग कौन राजे हुए एस का पता नहीं। दोलाराय के पीछे मा- णिक्यराय ( सन् ६८५ ई० ) हुआ जिस ने सांभर का शहर बसाया और सां- भेरी गीत स्थापन किया। फिर महासिंह, चन्द्रगुप्त [ १ ) प्रतापसिंह, मोह- नसिंह, सेतराय, नागहस्त, लोहधार, बीरसिंह [३], बिबुधसिंह और ___ * और पठान शब्द भी इसी से निकला हुआ मालूम होता है क्योंकि जो हिन्दुस्तान के पासके क्षत्रियधर्मा मुसहमान हैं वेही पठान कहलाते हैं।
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