[ २ ] शाह के दशहजारी सरदार जादोराव की बेटी से किया और पूना सूपा बादशाह से जागीर में पाया और शिवनेरी और चाकण दोनों किलों का सरदार भी नियत हुआ। अहमद नगर की बादशाहत बिगड़ने पर शहा जी दिल्ली में शाहजहां के पास गया और वहां से अपनी जागीर कायम रखने की सनद ले आया पर थोड़े ही दिन पीछे किसी वैमनस्य से दिल्ली का अधिकार छोड़ कर वह बीजापुर के बादशाह से जामिला और अपने राज्य में करनाटक के बहुत से गांव मिला लिये। शिवा जी शिवनेरी किले में जनमा और तब उस का बाप करनाटक में रहता था इस से उसने छोटेपन में पूनाग्रान्त में हादोजी कोण देव से शिक्षा पाई थी। छोटे ही पन से इस में बीरता के चिन्ह और लड़ाई के उत्साह प्रगट थे। उन्नीस बरस की अवस्था में तोरन का किला जीत लिया और दादो जी कोणदेव के सरने पर पूना के जिले का सब काम अपने हाथ में ले लिया। बीजापूर के पुरन्दर और दूसरे दूसरे काई किले अपने अधिकार में करके उस पर सन्तोष न कर के दिल्ली के बादशाही देशों में भी लूट कर इसने अपना बल, सेना और धन बढ़ाया। ___ मालव नाम की सूरजाति के लोग इस की सेना में बहुत थे और सन् १६४८ ई० में बीजापूर के बादशाह से इस के कल्यान की सूवहदारी लिया परन्तु जब बादशाह ने उस का बल बढ़ते देखा तो सन् १६५८ में अपने नफ़- जुल खां नासक सरदार को उस्ले लड़ने को भेजा पर शिवा जी ने धोखा देकर इस सरदार को मार डाला। __सन् १६६४ ई० में शिवा जी का बाप मर गया और तब से उसने अपना पद राजा रख कर अपने नाम की एक टकसाल जारी किया। वह पहले राजगढ़ और फिर रायगढ़ के किले में रहता था और उसने अपने बहुत से किले बनाये थे जिन से राजगढ़ और प्रतापगढ़ ये दो सुख्य थे। सन् १६५६ ई० में साम राज पन्त को शिवा जी ने पेशवा नियत किया। बीजापूर का बादशाह तो शिवा जी को दमन करने में समर्थ न हुआ पर औरङ्गजेब ने राजा जसवन्त सिंह को बहुत सी फौज दे कर शिवा जी को जीतने को भेजा पर शिवा जी ने बादशाह के श्राधीन रहना स्वीकार करके
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