[८ ] चार मनाम क के सब मे बैठ जाने का इशारा किया। यह काम श्रीयुत का जिस मे हम तोगों को छाती दूनी हो गई पायोनीयर मरीखे अंगरेज़ी समाचारपत्रो के सम्पादकों को बहुत बुग लगा जिन की समझ में वाइसरा- य का हिन्दुस्तानी तरन पर सलाम करना बड़े हेठाई र लज्जा की बात थो। व र यह तो इन अंगरेजी अखबारवालों की मामूली वा हैं । श्रीयुत वाइसगव ने जो उत्तम अस पढ़ा उस का तर्जुमा हम नीचे लिखते हैं :- ____ सन ०८५८ ईसवी की १ नवम्बर को श्रीमती महारानी की ओर से एक इश्तिहार जारी हुआ था जिम में हिन्दुस्तान के रईसों और प्रजा को श्रीमती की कृपा का विखास कराया गया था जिस को उस दिन से आज तक वे लोग राजसम्बन्धी वातों में बड़ा मनमोल प्रमाण समझते हैं। वे प्रतिज्ञा एक ऐमी महारानी की ओर से हुई थीं जिन्हों ने आज तक अपनी बात को कभी नहीं तोडा, इस लिये हमें अप मुंन से फिर उन का निचय कराना व्यर्थ है। १८ बरम को लगातार उन्नति ही उन को सत्य क- रती है और यह भारी समागम भी उन के पूरे उतरने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस राज के रईस और प्रजा जो अपनी २ परम्पग की प्रतिष्ठा निर्विन भोग-। ते रहे और जिन को अपने उचित नामों को उन्नति के यत्न में सदा रक्षा होती रही उन के वास्ते सरकार को पिछले समय की उदारता और न्याय आगे के लिये पक्की ज़मानत हो गई है। हम लोग इस समय श्रीमती महारानी के राजराजेश्वरी की पदवी लेने का समाचार प्रसिद्ध करने के लिये इकट्ठे हुए हैं, और यहां महारानी के प्रतिनिधि हो की योग्यता से सुसे अवश्य है कि श्रीमती के उस कपायुक्त अभिप्राय को सब पर प्रगट कार जिस के कारण श्रीमती ने अपने परम्परा की पदवी और प्रशस्ति में एक पद और बढ़ाया। ___पृथ्वी पर श्रीमती महारानी के अधिकार में जितने देश हैं-जिन का बिस्तार भूगोल के मातवें भाग से कम नहीं है, और जिन में तीन करोड आदमी बसते हैं-उन में से इस बडे और प्राचीन राज के समान श्रीमतो किसी दूसरे देश पर कृपादृष्टि नहीं रखा । सब जगह और सदा इंगलिस्तान के बादशाहों की सेवा में प्रवीण मोर परियमो सेवक रहते आए हैं परन्तु उन से बढ़कर कोर्न पुरुषार्थी नहीं हुए जिन की बुनि और बीरता से हिन्दुस्तान का राज सरकार के हाथ लग
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