नामक स्थान में पड़ा था उस समय शिमर नामक इबने जियाद के सेनापति
ने फुरात नहर का पानी भी इन पर बन्द कर दिया। एक तो गरमी के
दिन दूसरे सफर की गरमी और उस पर यह आपत्ति कि पानी बन्द । शि-
सर और उसर इस लशकर में सुख्य थे । यदि इन में से किसी को कमी दया
और धर्म सूझता भी लोभ उसे हटा देता। कहते हैं कि यजीद हिमदानी
ने साद से जाकर घमास के वास्ते पानी मांगा और कहा कि क्या तुम को
ईश्वर को मुंह नहीं दिखलाना है जो अपने गुरुपुत्र को निरपराध बध करते
हो। इस के उत्तर में उस दुष्ट ने कहा कि हम रे को हाकिमी को धर्म से
अच्छी समझते हैं। अन्त में अबीदुल्लाह ने सादपुत्र को आज्ञा लिखा कि
क्यों इतनी देर करते हो या तो हुसैन का सिर लाओ या उन की यजीद के
सत में लाश्री । इस आज्ञा के अनुसार ( सन् ६१ हिजरी के )2 वीं मुहर्रम
की संध्या को अट्ठाईस हजार सेना से उमर ने इमाम का लशकर घेर लिया।
इमाम उस समय संध्या की बन्दना में थे। उठ कर सैना से कहा कि रात
भर की सुझे और फुरसत दो उमर ने इस बात को माना। इमाम ने साथ
के लोगों से कहा कि अब अच्छा है चले जानो और मेरे पीछे प्राण मत दो।
परन्तु किसी ने न माना और सब मरने को उद्यत हुए । रात भर सब
लोग ईश्वर की स्तुति करते रहे। सबेरे इमाम ने स्त्रियों को धैर्य और सन्तोष
का उपदेश दिया और आप ईश्वर का स्मरण करते हुए सब हथियार बांधकर
अपने साथियों के साये मरने को निकले। इन के साथ जितने लोग मारे गए
उन की संख्या बहत्तर है। इन में ३२ सवार और ४० पैदल थे। सरदारों में
सुसलिम बिन उनका जरंगामः, वहब उन्स, मालिका, हुज्जाज़, जहीर, पास-
दी, आमिय, उम्मग, उमरान, सईद यमर, शुदब, और हबीब इबनें मजाहिर
( एक वृद्ध मनुष्य ) थे और इमाम के नातेदारों में इन की बहिन जैनब के
दो लड़के मुहम्मद और ऊन, और तीन मुसलिम के भाई, पांच इमाम हुसैन
के विमान भाई अब्बास, उसमान, सुहम्मद अबदुल्लाह और जाफर और
तीन पुत्र इमाम हसन के अबदुल्लाह जैद और कासिम। (किसी के मत से
५ अबूबकर और उम्न भी ) और एक पुत्र इमाम हुसैन वो अली अकबर
( अठारह बरस के ) इतने मनुष्य थे। युद्ध होने के पूर्व इसास एक ऊट पर
बैठ कर सैना के सामने आए और मृदु और गम्भीर वर से बोले कि हम ने
किसी की स्त्री होनी या किसी का धन हरण किया या कोई और बात धर्म
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