किया उससे चार पुत्र अब्बास जाफर उस्मान और अबदुल्लाह उत्पन्न हुए
जो चारी अपने भाई इसाम हुसैन के साथ करबला में बीर गति को गए इन
में से अब्बास को सन्तति चली तीसरी स्त्री कैसी उससे अबदुल्लाह और
अबूबकर यह दोनों सी करबला में मारे गए। चौथी स्त्री इसमानित से मु-
हम्मद और यहिया दो पुत्र हुए । इन चारो की सन्तति नहीं है। पांचवी
स्त्रो सहवाई से उसर और रकिया जिन में से समर को सन्तति है । छठवीं
एत्रो घरमामा इम को सुहम्मद मध्यम नामक पुन हुआ किन्तु आगे सन्तति
नहीं । सातवीं स्त्रो इनको खुला है जिनके पुत्र बड़े सुहम्मद हुए जिन का
वंश वर्तमान है । आदरणीय अन्ती को इन बेटों के सिवा चौदह बेटियां भी
हुई। इन सब से इमामहसन इमासहुसैन अब्बास सुहम्मद और उमर का वंश
है जिनमें इमामहसन और इमामहुसैन का सन्तति सैयद कहलाती है और
शेष तीनों की साहबजादों के नाम से पुकारी जाती है। किन्तु शीया लोगों
में अनेक इमाम हसन के वंश की भी सैयद नहीं कहते हैं और कहते हैं
कि ठीक सैयद केवल इमाम जनलाबदीन (पमाम हुसैन के मध्यस पुत्र)
का वंश है । प्रादरणीय अली सब के पहिले मुल्ममान हुए और दहिनी
भुजा की भांति महात्मा मुहम्मद के सदा सहायक रहे । इन्ही अली के पुत्र
इमाम हुसैन थे जिन का दुष्टों ने करबला में वध किया, जिसका हम क्रम
से वर्णन करते हैं।
महात्मा मुहम्मद के [ ६३२ ई० ] मृत्यु के पीछे अबूबकर [ ६३२ ई० ]
खलीफा हुए और उनके पी उमर [६३४ ई.] और फिर उसमान [६४४
ई० ] इस में कुछ सन्देह नहीं कि महात्मा मुहम्मद पीछे उनके सब शिष्यों
का धन और देश और शासन के लोभ ने ऐसा घेर लिया था कि सब धर्म
को अन्त गए थे। केवल भाड़ के वास्ते धर्म था । यद्यपि उपद्रव ती मुहम्मद
महात्मा को मृत्यु के साथ ही हुआ किन्तु तीसरे खलीफा (महन्त ] के काल
से उपद्रव बढ़ गया। यह हम पक्षपात छोड़ कर कह सकते हैं कि ऐसे घोर
समय में आदरणीय अली ने बड़ा सन्तोष प्रकाश किया था। शाम ( Asia
minor ) के लोग इन सब उपद्रवों की जड़ थे । उन में भी कूफा के सन्
६५६ में इन उपद्रवियों ने उससान महन्त का व्यर्थ बध किया, और पादर-
गीय अली को खलीफा बनाया। यही समय मुहर्रम को अन्याय की जड़ है।
उसमान खलीफा के समय में महात्मा मुहम्मद के निज शिष्यों में एक मनुष्टा