राज करने लगे। ज़ार को माता गुशिया के सांबाट टतोय फ्रेडरिक की
वाचा धों। इन्हों ने स्वयं अपने लड़के ज़ार को विद्या सिखाई परन्तु इस
बात से इनको पिता अप्रसन्न रहते थे। उन्हों ने ज़ाद को फौजी गवर्नरों और
निपुण शिक्षकों के पास विद्योपार्जन के निमित्त बैठाया। इस बात को ज़ार
ने अनहित समझ अपने को उस शिक्षा से हटाया और देश २ पर्यटन कर-
नेलगे और कुछ कान्त तक अपनी माता की सम्बन्धिनी स्त्रियों के सहवासी
बहे । ये राजकीय प्रबधों से बहुत प्रसन्न रहते थे। सैनिक कासों में इन का
सन कुछ भी न लगता, । जो बात रूसी राजदरवार के संपूर्ण बिरुद्ध थी।
इस विषय में पूर्ण चिंतना और यह कल्पना होने लगी कि इस युवराज को
अधिकान में पुराने रूसी समूह क्यों कर रहने पावेंगे। यह बात इन के भाई
प्रांड का कांसृनटाइन के लिये परसोपयोगी थी। इन दोनों भाइयो में इस
कारण ईर्षा उत्पन्न हुई । सामान्यतः इस बात की चर्चा होने लगी और कभीर
लड़ाई भी होती जाती थी।
एक समय की बात है कि इन के भाई कसृन्टाइन ने जो ससुद्रीयसेना
को ऐडमिरल थे, इतनी अधिक शत्रुता इन पर की गाई कि ये को द वार लिए
गए। इस व्यवहार के पलटे निकोलस ने यही दगड़ देना करेन्टाइन को
योग्य समझा । इस बापुस के विरोध से इन के पिता को बड़ा शोच रहता
था। जब कि सन् १८४३ में अलेक्जेंडर का प्रथम पुत्र जसा तब निकोलस ने
कांटेन्टाइन से शपथ ली कि वह युवराज का पानाकारी रहेगा। निदान
निकोलस ने अपने मरने के समय दोनों लड़कों को बुलाकर उन के समक्ष
अलैक जैडर को राज्याधिकार का तिलक दे दिया और इन दोनों से शपथ
ली कि आपुस में बिरोध रहित राज्य प्रवन्ध में सन्न रहें जिस से प्रना और
साज्य को हानि न पहुंचे। यह सुन शाहजादे ने बड़े २ प्रधान संनियों के
सन्मुख प्रतिज्ञा की कि बाच्च प्रबंध हम भलीभांति करेंगे और अपने को
हितीय अलेक जैडर के नाम से विख्यात किया। उसी दिन अपरान्ह समय
सब राजकीय और सैनिक कर्मचारियों, ने जो सेपीटर्सवर्ग में थे त्राज्ञाकारी
खोकार की और भेंटें दी । एक कौंसिल जो नवीन अलेक जेंडर के लिए
नियत हुई थी उस में यह विचार ठहरा कि जो बुद्ध उस से और अन्ध राजी
से होरहा है वह हुश्रा करे । अलेक जैडर का प्रथम काम यह था कि उसने
सात राज्यभर में अपने नाम और राज्यसिंहासन पर स्थित होने का विज्ञा-