पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२९३

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कोई आ कर कहे कि चन्द्रमा में भाग लगी है तो कभी विश्वास न होगा उसी प्रकार भरतखंड के उपराज का एक कैदी के हाथ से मारा जाना किसी समय में एकाएकी ग्राह्य नहीं होसकता। हाय ! देश को कैसा दुःख हुआ ! अभी वे ब्रह्म देश की याना करके अंडमन्स नाम हीपस्थित दुखियों के सहा- यार्थ उपाय करने को जाते थे और वहीं ऐसी घटना उपस्थित हुई। चीफ जमिस नार्मन का मरण भूलने न पाया और एक उस से भी विशेष उपद्रव हुआ और फिर भी सुसल्मान के हाथ से। यद्यपि कई अंग्रेजी समाचार पत्र सम्पादकों ने लिखा है कि जो कारण नारसन साहेब के मारने का था सो श्रीमान के घात का कारण नहीं हो सकता परन्तु इस में हमारी सम्मति नहीं है। क्योंकि यदि शेरअली के मन यह बात पहिले से ठनी न होती तो वह ऐसे निर्जन स्थान में छुरो ले कर छिपा क्यों बैठा रहता। फिर एक दूसरे कैदी के “ इजहार" से स्पष्ट जात होता है जिस समय शेरअली ने अब्दुल्ला के और नार्मन साहेब के मरण का समाचार सुना कैसा प्रसन्न हुआ और लोगों का निमन्त्रणा किया। यदि वह उस वर्ग का न होतो जो कि तन मन से चाहते हैं कि सरकार " काफिर" है इस लिये उस के बड़े २ अधिकारि- यों को मारने से बड़ा “ सबाब" होता है प्रसन्नता और निमन्त्रण का क्या कारण था। फिर वह स्वतः कहता है कि अपने मरण के पर्व मैं एक बात कहंगा । वह कौन सी बात हो सकती है ! इन सब विषयों को भली भांति दृढ़ कर को तब उस को फांसी देना उचित है।

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लार्ड लारेन्स का जीवन चरित्र ।

सन् १८११ ई० ४ मार्च को उक्त महात्मा ने जन्म ग्रहण किया था। उन्हों ने पहिले कुछ दिन वर्ड लण्डन डरी के काथल कालिज में शिक्षा लाभ की थी, बाद उस के हेलिवार कालिज में पढ़ने लगे। १८२८ ई. में सिवीलियन हो वार भारतवर्ष में पाए। १८३१ ई० में दिल्ली के रेजीडेण्ट और चीफ का- मिश्नर सहकारी हुए। १८३२ ई० में प्रतिनिधि सजिसूर और कलक्टर हुए। १८३४ ई० में पानीपत को प्रतिनिधि मजिसर हो के गए। २ बरस के बाद गुड़गांव के एजण्ट मजिस्मृर और डिपटी कलक्टर हुए। कई एक वर्षों को बाद दिल्ली के मजिस्टर हुए। उस समय यहां के गवर्नर जनरल सन हेनरी