[ ७३ । कुल मर्याद सीमा परिबद्ध उद्विग्न चित्त होकर खिड़कियों पर बैठी युगल नेत्र प्रसारनपूर्वक अपने हितैषी, परमविद्याशाती, और परमगुणवान उप- राज के मृतक शरीर के आगमन को मार्ग प्रतीक्षा करती थीं । मार्ग में गाड़ियों की श्रेणी बंध गई थी, नदी में सम्प र्ण नौकाओं के पताका युक्त मस्त ल झुक रहे थे मानो सब सिर पटक २ रो रहे हैं । दुर्ग से सेना धीरे २ आई और गवर्नमेन्ट हाउस से उक्त घाट पर्यंत श्रेणी बद्ध होकर खड़ी हुई और प्रत्येक वर्ग के पुरुष समुचित स्थान पर खड़े थे एक सन्नाटा बंध गया था कि पौने पांच बजे घाट पर से एक शतघ्नी ( तोप ) का शब्द हुआ और उस- का प्रतिउत्तर दुर्ग और कानी नास नौका पर से हुआ। बाजावालों ने बड़ी सावधानी से अपने २ वाद्य यन्त्रों को उठाया और कलकत्ते के बाल नीयर्स लोग आगे बढ़े । एक तोप को गाड़ी पर एङ्गलंड के राजकीय पताका से याच्छादित श्रीमान गवर्नर जनरल का मृतक शरीर शवयात्रा के आगेहा, उस समय लोगों के चित्त पर कैसा शोच छा गया था उसका वर्णन नहीं हो सक्ता। ऐसा कौन पाहनचित होगा जिसका हृदय उस. श्रीमान् के चंचल श्रश्न को देख कर उस समय विदोण न हुअा होगा। उसके नेत्र से भी अशु- धारा प्रवाहित होती थी। हा ! अब उस घोड़े का चढ़नेवाला इस संसार में नहीं है । उस्स भी शोक जनक श्रीमान् के प्रिय पुत्र की दशा थी जो कि विषन्नवदन, अधोमुख, सजल नयन, बाल खोले अपने दोनों चचा के साथ पिता के मृतक शरीरक के साथ चलते थे, हा ! ऐसी वयस में उन्हें ऐसी बि- पद पड़ी। परमेश्वर बड़ा विषमदर्थी दीख पड़ता है। वैसेही मेजर वन भो देखे नहीं जाते थे। शोक से अांखें लाल और डबवाई हुई थी और अनाथ की भांति अपने खामी बरन उस मित्र के शोक में अातुर थे जिन्ने उन्हें अन्त में पुकारा और मरग समय उन्हीं का नाम लिया हा !। यह यात्रा निम्नलि- खित रीति पर गवर्नमेन्ट हाउस में पहुंची। क्वार्टर मार केनरल के विभाग का एक अश्वारोही अफसर, फस बेंगाल कवलरी (आखरोही सेना ) का एक भाग । कलकत्ते के बालन्टीयर्स की रफल पलटन अस्त्र उलटा लिए हुए और श्रीमहाराणी की १४ वीं रजमट का शोक सूचक बाजा बजता हुआ। श्रीमान् का बाजा वाडो गार्ड (शरीर रक्षक ) पैदल
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