[ ६६ बुन्न पगिडत शंभूनाथ अपनी वकीली से लेकर के जज्ज होने की अवस्था तक जन्हें बहुत प्यार करते थे ठकुरानो दासी को कर सम्बन्धी बड़े सुकद्दमें में १५ जजों के पुन्त बेंच के सामने मिस्टर डाइन ऐसे प्रसिद्ध वकील और बनेका अंगरेज वाशीलों को सात दिन तक अनवरत वाग्धारा वर्षण से और कानून लम्बन्धी लक्ष्य बातों की कार से परास्त करक हिन्दू. वकीलों में इन्हों ने चि- रकीर्तिका ध्वज स्थापित किया और गवर्नमेंट की इन पर विशेष दृष्टि से उस समय में जब को इन की त्रासदनी एका लाख रुपये साल की थी ये गवर्नमेंट की मुख्य वकील हुए और पण्डित शंभूनाथ के मृत्यु पर सन् १८६७ में ये बिना इच्छा किये भी जस्टिस पीकाक्ष की प्रार्थनानुसार गवर्नमेंट ले प्रधान जज नियत किये गये और विचारासन पर बैठ कर जैसी योग्यता और शुक्ष चित्त ले सावधान होवार इन्हीं ने काम किया वह हिन्दू समाज में चिरस्मरणीय है जस्टिस पीक्षाक को अतिरिता कोई जज्ज इन की योग्यता के तुल्य नहीं गिने जाते थे और एक व्यभिचारिणो के दाय भाग के बड़े सु. बाहमें के लमय बीमार होकर लात बरस जजो का काम करके अपने ग्राम में अपनी हद्धा माता तोसरी स्त्रो दो बालका और दो विवाहिता बानिया छोड़ कर ये भारतवर्ष को शुन्य कर के अपनी ४३ वर्ष को अवस्था में ता० २५ पोनुवरी १८७४ बुध को दिन परन्तोक को सिधारे। www.nriins श्री राजा राम शास्त्री का जीवनचरित्र । श्रीयुत् पण्डितवर राजारामशास्त्री वेद श्रौतादि विविध विद्यापारीण श्रीयुत् गोबिंदभट कार्लेवार को तीन पुत्रों में कनिष्ठ थे । जब ये दस वर्ष के लगभग थे तब इन के पिटवरण परतीका को सिधारे । फिर त्रिलोचन घाट पर एक ऋषितुल्य सहातपल्ली श्रीयुत् रानडीपनामवा हरिशालो विहान्न नाहाण रहते थे उन के पास इन्हों ने अपनी तरुण अवख्या को प्रारंभ में काव्य और कौमुदी पढ़ कर वास्तिवानास्तिको भयविध हादश दर्शनाचार्यवयं परम मान्य जगहिदित कीर्ति श्रीयुत् दामोदर शास्त्री जी के पास तर्कशालाध्ययन प्रारम किया। थोड़ी ही दिनों में इन को अतितीकिका प्रतिभा देख बार उन को उता शास्त्री जी महाशय ने अपनी शुद्ध अवस्था को कारण पढ़ाने का पाया अपने से न हो सकेगा, जान कार श्रीमान् कलाल निवास परमा-
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