वारह बजे उन का देहांत हुआ जब ये राजसिंहासन पर थे. इन्हीं ने रोम के प्रथम प्रख्यात महाराज जुलियससीज़र का इतिहास लिखा । इम सब वृत्तान्त से स्पष्ट विदितं होगा कि इन को जन्म भर फेरफार उल्लट पुलट करते व्यतीत हुआ उन को भलो भौति स्वस्थता कमी नहीं हुई थी। प्रशियन लोगों से इन का पराभव होने तक सर्ब पृथ्वी में इधर दश वर्ष परिय्यन्त इन के समान बुद्धिमान और वीर सर्व सामान्य गुणयुत्ता दूसरा पुरुष नहीं हुआ। ऐसा लोग कहते है कि इन को शीघ्र इस दशा में पहुंचने का सुख्य कारण यही है कि इन से कोई परोपकार नहीं हुआ और इन के हाथ जेनरल बाशीकन के समान निष्काम और परोपकार से रहित थे और अपने बुद्धि से कोई उत्तम कृत्य नहीं किया. इसी कारण इनकी कीर्ति का उदय और अस्त अन्तकाल में हुआ तथापि यह मनुष्य अति उच्च पद को प्राप्त करके पतन हुआ और परिणाम अत्यन्त खेदजनक हुआ इस से सकल मनुष्यों को खेद हुआ यह वार्ता प्रसिद्ध है। . महाराज जंगबहादुर का जीवन चरित्र । केगु . ३स शुकरा श्रीसन्महाराज जंगबहादुर का बैकुंठ बास होना सब पर विदित है और नहुत से समाचार पत्रों में यह समाचार प्रकाश हो चुका है परन्तु इसारी लेखनी इस शोच से काले आसुओं से न रुदन करै यह चित्त नहीं सहन कर सकता। बादशाह रंजीत सिंह को सब लोग भारत वर्ष का अंतिम 'मनुष्य काहते ष्टी परंतु महाराज जंगबहादुर ने अपने प्रमेय बल से उन्ही लोगों से
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