गए सन् १८४८ के फ्रांस के युद्ध तवा वहां रहे इस युद्ध के समय फ्रांम के निवा सियों ने इन को न्यानन्न असेम्बी का सभासद नियत किया तदनंतर उन्ही महाशयों ने इन वो अध्यक्ष नियत किया तारीख २ दिसम्बर सन् १८५१ को उन्हीं ने कई महाशयों के विचार से और. पारसि के सर्व प्रसिद्ध राजकीय महोशयों को घेर कर कारागार में डाल दिया और न्यानल असेम्बली को ताड़ कर के स्वतः सुख्याधिकारी डिकटर नाम से आप प्रसिद्ध हुए कुछ सेना मार्ग में रख कर प्रबंध किया नंगर का प्रबंध करने के अनंतर सकल देश का हम को दस वर्ष अध्यक्ष का अधिकार मिला यह प्रसिद्ध किया और उन्ही के इच्छानुसार सब अधिकार उन को प्राप्त हुआ और उन्होंने फ्रेंच लोगों की सम्मति से तारीख २: दिसबर सन् १८५२ को अपने को महाराज तीसरा . नैपोलियन कहवाया। . • इंग्ल ण्ड के सरकार ने प्रथम उन को मान्य किया और पश्चात् यूरोपीयन सब राजाओं ने धीरे धीरे उन को फ्रेच का महाराज कहना स्वीकार किया सन् १८५३ के जनवरी की १३ तारीख को उन्हों ने विवाह किया तदनंतर १८५४ में रशिया के युद्ध का आरम हुअा और सन् १८५६ में समाप्त हुआ इस युद्ध से उन की बड़ी प्रतिष्ठा हुई सन् १८५८ । ६० इस वर्ष में उन्हों ने विकृर इमानुअल की सहायता कर के इटली को आसिया के अधिकार से निकाल कर स्वतंत्र किया और असिया का पराभव करने से उन की और भी विशेष प्रतिष्ठा बढ़ी और उन को कुछ देश भी इसी कारण मिला इसी समय में महाराज नेपोलियन ने अत्युच्च पद की प्राप्ति किया यह स- मंझना चाहिए। तदनंतर. मेक्सिको में इन्होंने प्रयत्न और लड़ाई करके अप- ना राज्य स्थापन किया परन्तु इस का परिणाम अत्यंत दुःख कारक हुना अंत में सन् १८७० में शिया और उन के युद्ध का प्रारम्भ होकर इन का भली भांति पराभव ता० २ सेप्टेंबर सन् १८७० में हुआ तदनंतर कुछ दिवस जरमनी के दुर्ग में बद्ध रहकर छूट गए पश्चात् इंग्लण्ड में आप और अपनी राणी और पुत्र चिरंजीव ग्रिन्स नैपोलियन यह सब तारीख २० मार्च सन् १८७१ को एकत्र हुए इस पुत्र का जन्म ता० १६ मार्च सन् १८५६ में हुआ था अंत का समय उन का साधारण मनुष्य के समान परदेश में और परराष्ट्र में व्यतीत हुआ उन को कई दिन से रोग हुआ पर शास्त्रोपाय बहुत करते थे परन्तु उस से कुछ न्यून न हुआ और बहुत कम हो गएं तारीख को दिन के साढ़े
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