पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२७०

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प्रमिह हम्मीर [५] के साथ खेत ता था। इस के बंश में हरिचन्द्र [६] हुआ उस के पुत्र को सात पुत्र हुए जिन में सबसे छोटा [ कवि लिखता है ] मैं सूरजचन्द था। मेरे छ भाई सुमल्मानों के युद्ध [७] में मारे गए। मैं अन्धा कुबुद्धि था। एक दिन कुंए में गिर पड़ा तो सात दिन तक उस (अंध ] कुंए में पड़ा रहा किभी ने न निकाला । सातए दिन भगवान ने निकाला और अपने स्वरूप का ( नेत्र दे कर ) दर्शन कराया और सुझ से बोले कि बर मांग । मैंने बर मांगा कि आप का रूप देख कर अब और रूप न देखें और सुझ को दृढ़ भक्ति मिले और शत्रुओं (८) का नाश हो । भगवान ने कहा ऐसा ही होगा तू सब विद्या में निपुण होगा। प्रबल दक्षिण के ब्राह्मण कुन्त ( 2 ) से शत्रु का नाश होगा। और मेरा नाम सूरजदास सूर सूर श्याम इत्यादि रखकर भगवान अन्तर्धान हो गए । मैं व्रज में वसने लगा । फेर ५ हमीर चौहान, भीमदेव का पुत्र था । रणथम्भौर के किले में इसी की रानी इस के अलाउद्दीन ( दुष्ट ) के हाथ से मारे जाने पर सहस्रावधि स्त्री के साथ सती हुई थी। इसी का वीरत्व यश सर्ब साधारण में 'हमीर हठ' के नाम से प्रसिद्ध है (तिारया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजो बार ) इसी की स्तुति में अनेक कवियों ने बीर रस के सुन्दर श्लोक बनाए हैं “ मुञ्चति मुञ्चति कोषं भजति च भजति प्रकम्पमरिवर्ग। हमीर बीर खङ्ग त्यजति च त्यजति क्षमा माश" । इस का समय सन् १२८० ( एक हमीर सन् ११८२ में भी हुपा है) ६ सम्भव है कि हरिचन्द के पुत्र का नाम रामचन्द्र रहा हो जिसे वैष्णवों ने अपनी नीति के अनुसार रामदास कर लिया हो। ७ उस समय तुगलकों और सुगलों का युद्ध होता था। ८ शत्रुओं से लौकिक अर्थ लीजिए तो मुगलों का कुल [ इस से सम्भव होता है इन के पूर्व पुरुष सदा से राजाओं का प्राश्रय करके सुसल्मानों को शत्रु समझते थे या तुगलकी के आश्रित थे इस से मुगलों को शत्रु समझते थे) यदि अलौकिकार्थ लोजिए तो काम क्रोधादि । ८ सेवा जी के सहायक पेशवा का कुल जिस ने पीछे मुसल्मानों का नाश किया। अलौकिक अर्थ लीजिये तो सरदास जी के गुरू श्री वल्लभाचार्य दक्षिण ब्राह्मण कुल के थे।