[ ५० ] उसी साल असाढ़ सुदी ८ को काशी के प्रसिद्ध पंडित माधवानन्द तीर्थ त्रिदंडी से विद्याध्ययन किया और छोटेपन ही में पत्रावलम्बन ग्रन्थ करके विश्वनाथ के दरवाजे पर लगा दिया और डौंड़ी पीट कर काशी के पंडितों से पहला शास्त्रार्थ किया जब इन के पिता काशी से चले, तो लक्ष्मण बाला जी में उनका देहान्त हुआ, उन को क्रियादिक के पीछे आचार्य पृथ्वो परि- क्रमा को चले और विद्यानगर में जाकर, कृष्णदेव राजा की सभा में सब पं- डितों को जीत कर प्राचार्य पद पाया । संवत १५४८ के बैशाख बदी २ को ब्रह्मचर्य धर्म से पहिलो पृथ्वी परिक्रमा करने चले और पंडरपुर नग्बक उज्जैन होते हुए बन पाए और चार महीने श्रीवृन्दावन में रहकर श्रीमद्भा- गवत का पारायण किया और फिर सोरों अयोध्या व नैमिषारण्य होते हुए काशी पाए । राह में जो पण्डित मिन्नते उनसे शास्त्रार्थ करते और वैष्णव धर्म फैलाते थे । काशी जी से गया और जगन्नाथ जी होते हुए फिर दक्खिन चले गए और संवत १५५४ अपना पहिला दिग्विजय समाप्त किया दूसरे दिग्विजय में वृज में गोवईन पर्वत पर सोनाथ जो का स्वरूप प्रगट करके उन की सेवा स्थापन किया, और तीन पृथ्वी परिक्रमा करके सारे भारतखंड में वैष्णव मत फैला- कर बावनवर्ष की अवस्था में संवत १५८७ प्रासाढ़सुदी २ को काशी जीमें लीला में प्राप्त भए । एनके दो पुत्र बड़े श्रीगोपीनाथ जी छोटे श्री विठ्ठलनाथ श्री सहा प्रसुन की जन्म कुण्डन्ती ऊपर के कीर्तन अनुसार । 9004 बृ४
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