[ ४८ ] श्रीवल्लभाचार्य का जीवन चरित्र । दोहा-तम पाखंड हि हरत करि, जन मन जलज विकास । जयति अलौकिक रवि कोऊ. अति पथ करन प्रकास ॥ जो लोग बहुत प्रसिद्ध हैं और जिन को लाखों मनुष्य सिर झुकाते हैं उन के जीवन चरित्र पढ़ने या सुनने को किस को इच्छा न होगी इस हेतु यहां पर श्री वल्लभाचार्य का जीवन चरित्र संक्षेप से लिखा जाता है। ___ मन्दाज हाते से, तैलंगदेश के प्राकबीडु जिले में कांकरबलि गांव में भारद्वाज गोत्र, तैलंग ब्राह्मण जाति, पंच प्रवर, यजुर्वेद, तैतिरीयशाखा, दी- क्षित सोमयागी उपनाम, यजनारायण भट्ट के प्रसिद्ध बंश में, लक्ष्मण भट्ट जो को धर्म पत्नी इल्लसगारु के गर्भ से, चम्पारण्य में इनका जन्म हुआ। __ लक्ष्मण भट्ट जी के तीन पुत्र थे, बड़े रामकृष्ण भट्ट जी युवावस्थाही में सन्यस्त हो गये और केशव पुरी नाम से प्रसिद्ध हुए। मझले पूर्वोक्ताचार्य और छोटे रामचन्द्र भट्ट जो, जिन के कृष्णकुतूहल गोपाल लीला इत्यादि अनेक ग्रन्थ हैं। इन्हों ने अपने नाना को वृत्ति पाई थी परन्तु विवाह न करवो अपना सब जीवन अयोध्या में बिताया । लक्ष्मण भट्टजी अपने घर के खान पान से बहुत सुखी थे, वे जब काशी में अपने जाति के ब्राह्मणों का सत्कार करने आये तो मार्ग में बितिया के इलाके में चौरा गांव के पास चम्पारण्य में संवत १५३५. बैशाख बदी ११, (१) आदित्यवार को मध्यान्ह समय आचार्य का जन्म हुआ जब ये पांच वर्ष के हुए तब चैत सुदी ८ को दिन अपने पिता से गायत्री उपदेश लिया और क- ष्णदास मेघन को उसी दिन अष्ठाक्षर मंत्र का उपदेश करके प्रथम वैष्णव किया। १ बल्लभ दिग्विजय में लिखा है। संवत १५.३५ शाके १४४० बैशाख मास कृष्ण पक्ष ११ रविवार सध्यान । एक पद श्रीहारकेश जी कृत ॥ रागसारङ्ग ॥ तत्व गुनवान भुव माधवासित तरणि प्रथस सौभग दिवस प्रकट लक्ष्मण सुवन । धन्य चम्यारन्च मन्य त्रैलोक्य जन अन्य अवतार भुवि है न ऐसो भवन ॥ १ ॥ लग्न बृश्चिक कुंभ कोतु कवि इन्दु सुख मीन नुव उच्च रवि बैरि नाशे। मन्द बृष कर्क गुरु भीम युत सिंह मैं तमस के योग ध्रुव यश प्रकाशे ॥ २ ॥ रिक धनिष्टा प्रतिष्टा अधिष्टान स्थिर बिरह बदनानलाकार हरि को । यहै निश्चय हारकेश एनके शरग और को थी बल्लाधीश सर को ॥३॥
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