[ ४५ शिव जी ने हुं कर के बररुचि का इन्द्रमत का व्याकरण भुला दिया इसमें बररुचि ने फिर तपस्या कर के शिव जी से पाणिनि व्याकरण सीखा। यह बरश्चि बहुत दिन तक योगानंद का मंत्री रहा और इस का नामान्तर कात्यायन था परन्तु यह नंद का मन्त्री कैसे हुआ और कान तक रहा यह यहां नहीं लिखते क्योंकि प्रसंग के बाहर है । यह बन २ फिरने लगा जब शकटार ने चाणक्य द्वारा नंद बंश का नाश किया तब उदास हो कर किसी तरह का संदेह नहीं क्योंकि उसने अपने भाष्य में " सभाराजा मनुष्य पूर्वा” इस सूत्र पर "चंद्रगुप्तसभम्" ऐसा उदाहरणदिया है।" Dr. Rajendra Lal Afitra L. L. D. in his Indo-Aryans No. 1 P. 19 "say's, according to Dr. Goldstucker, the Grammar of Pa- nini was composed between the 9th and the 11th centuries before Christ Professor Max Muller brings down the age of the Gram- mar to the 6th century B. C." पाणिनीय व्याकरण के समय में निम्नलिखित बातें होती थों । १ उस समय के लोगों में इंसी करने की चाल थो । एहिमन्य प्रोदनं भोयसे इति भुक्ताः सोऽतिथिभिः-सानो भात खाने पाया है सब खा पी गया। २ श्राद्धों में नाती को अवश्य बुलाने की चाल थी निमन्त्रणं, आवश्यक श्राद्ध भोजनादौ दौहिनादेः प्रवर्तनं-निमन्त्रण, अर्थात् जैसे नाती वगैरह को श्राव भोजन में बुलाना। ३ नृता और न्टता में भेद । गाव विक्षेपमात्रं तं भांड़ों का तमासा, बदन तोड़ना इतयादि । पदार्थी भिनयोनृत्यं-भावादिको का दिखलाना। ४ बहुत सी कहावते उस समय के लोग जानते थे जैसा । नविखसेदवि- श्वस्त'-जिस्का विश्वास एक वैर गया फिर उस का विश्वास न करना । ५ आलिङ्गम करने को रीत थी । अस्लिचत् कन्यां देवदत्तः–देव दत्त ने कन्या को आलिङ्गन दिया। ६ तड़कियों को गहना पहिनाने की चाल । उपस्क ता कन्या-अलंकार महिनाई गई कन्या । ७ सुहावरेवार बोलने की चाल । इस्तयते-हाथी पर चढ़के जाता है।
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