[ ४४ विद्या पाई परन्तु स्वान्द ने कहा था कि जो एका शुतिधर हो उस के सामने तुल अपनी विद्या प्रकाश कारना । मी जछ वर्ष के पास ये दोनों बाधान गए सब उस की स्त्री ने कहा कि एक अतिधर कोई हो तो ये अपनी विद्या प्रका- श करें अन्यथा न प्रकाश करेंगे इसी से वे दोनों वाहाण वररुचि को एक युतिधर पा कार बड़े प्रसन्न हुए। पर क्षचि की माता से उन दोनों ने सब - तांत कह कर बररुचि को साध लिया और फिर पाटलि पुन में पाए क्योंकि उसकी माता से भी प्राकाशवाणी ने कहा था कि तेरा पुत्र एक श्रुति धर होगा और वर्ष से नब विद्या पढ़ेगा और व्याकरण का प्राचार्य होगा बर्ष ने तब उग तीनों को विद्या पढ़ाया और बहुत प्रसन्न हुश्रा क्योंकि बर मचि एक श्रु- तिधर हि श्रुतिधर व्याड़ि और इन्द्रदत्त त्रिशुतिधर था, । बर्ष को नगर के लोग मूर्व जानते थे पर जब एका एको उम के विद्या का प्रकाश हुआ तो सब ब्राह्मण वर्ग बड़े प्रसन्न हुए और नंद राजा ने भी बहुत सा धन वर्ष वो दिया, फिर इन तीनों ने बड़ी विद्या पढ़ो और वररुचि ने उपपर्ष को कला उपकोषा मे विवाह किया, चौर उपकोषा अपने पातिव्रत और दरित्र से. नन्द की भगिनी हुई , वर्ष के एक पागिानी * नामा सर्ख शिष्य ने शिव जी मे बर पा कर व्याकरण बनाया और जब चरचि ले उस मे वाद किया तो
- दराजा शिव प्रसाद वो लिननते हैं। “समय के उलट फेर में हमारे पंडित
लोग जो कुछ अपनी पंडिताई दिखलाते हैं निखने योग्य नहीं है इसी एक दात से सोच लो कि जिस पंडित से पाणिनि वैय्याकारण का ज़माना पूछोगे हटते क- हेगा कि सत्ययुग में हुआ था लाखों बरस बीते परंतु एम से इन्कार न करेगा कि कात्यायन की पतंजलि ने टीका लिही और पतंजलि की व्यास ने अब हेम- चन्द्र अपने कोण में कात्यायन का नाम वररुचि बतलाता है और कश्मीर का सोमदेव मह अपने कथासरित्मागर में लिखता है कि कात्यायनवररुचि कौ- शाब्बी में जो अब प्रयाग के पास जमना किनारे कोसम गांष कहताता है पैदा हुधा पाणिनि से व्याकरण में मास्त्रार्थ किया और राजा नन्द का मंत्री हुना सुद्राराक्षस इत्यादि वहुत गंधों से साबित है कि नन्द के बाद ही चन्द्र- गुप्त राज्य सिंहासन पर बैठा और चन्द्रगुप्त का ज़माना ऐसा निसय ठहर गया है कि जैसे पलासी की लड़ाई अथवा नादिरशाहो अथवा पृथीराज और वि- कम का तो कहो कि हम पाणिनि का ज़माना अब अढ़ाई हजार बरस से इ.वर माने या क्षाखों वरम से उधर ? पतंजलि चन्द्रगुप्त के पीछे इमा पूस में
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