भाषापी में अनेक जन हात अनुबादित हुआ है । हिन्दी में इस के छन्दीबई तीन अनुवाद है। प्रथम बाजा डालचन्द की आजा से रायचन्द नागर कृत, हितोय तसर के प्रसिद्ध मन खामो रत्नहरीदास कृत और टतीय इस प्रवन्ध को लेख का हरिश्चन्द्र हात । इन अनुवादों के अतिरिक्त द्राविड़ और कार्णाटादि भाषाओं में इसके अपरापर अन्य अनेक अनुवाद है। लोग कहते हैं कि जयदेव जी ने गीतगोबिन्द के अतिरिक्त एका ग्रन्य रति- मञ्जरी भी बनाया था किन्तु यह अमूलक है गीतगोबिन्द कार को लेखनी रो रतिमञ्जरी सा जघन्य काव्य निकले यह कभी सन्भव नहीं। एक गङ्गा की स्तुति में सुन्दर पद जयदेव जी का बनाया हुआ और मिलता है वह उनका बनाया हुआ हो तो हो। __ इस भांति भनेक सौ बरम हुए कि योजयदेव जी एस पृथ्वी को छोड़ गए। किन्तु अपनी कविता बन्न से हमारे समाज में वह सादर पाज भी बिराजमान हैं। इनके स्मरण के हेतु के न्दुन्ती गांव में अब तक मकर की संक्रान्ति को एक बड़ा भारो मेन्ता होता है जिस में लाठ सत्तर हज़ार वैष्णव एकात्र हो वार इन की समाधि के चारों और संकीर्तन करते हैं । महिम्न योर पुष्पदन्ताचाव्य । यह स्तोत्न अव रीमा प्रसिद्ध है कि शार्ष को भांति माना जाता है वरंच पुराणों में भी कहीं २ इसका महात्मा मिलता है, गका प्रसंग है कि जब पुष्य- दन्त ने महिरन बना वो शिव जी को सुनाया तब शिव जी बड़े प्रसन्न हुए इम्पे पुष्पदन्त को गर्व हुआ कि मैंने ऐसी अच्छी कविता किया कि शिव जी प्रसन्न हो गए यह नात शिव जी ने जाना और अपने स्मृती गण से कहा कि मुंह तो खोन्तो जब भृङ्गी ने मुंह खोला तो पुप्पदन्त ने देखा कि महिम्न के वजीरों लोक भृङ्गी के बत्तीसों दांत में लिखे हैं इस्से यह बात शिव जी ने अगर किया कि ये लोक तुसने नहीं बनाए हैं वरंच यह तो हमारी पानादि स्तुति के सोका है। यह बात प्रसिद्ध हैं कि पुष्पदन्त जब शाप से वा- ह्यण हुअा था तब यह स्तोत्र बनाया है और ऐसी ही पाने का आख्यायिका हैं पाच वह पुष्पदन्त कौन है और कन वह ब्राह्मण हुआ इसका विचार करते हैं। कथासरितसागर में एक पहिला ही प्रसंग है जिस्म यह प्रसंम बहुत स्पष्ट होता है, उस में न्ति रखते हैं कि पार्वती जी का मान छुड़ाने को शिवजी
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