डाक्ट राजेन्द्रलाल मित्र के सत से इस की संस्कृत की रचना प्रनाली नकल वा दशस वा एकादश शताब्दी की है। शोच की बात है कि इस प्रशस्ति में संवत् नहीं दिया है नहीं तो जयदेवजी के समय निरूपण में इतनी काठि- नाई न पड़ती। इस में हेमन्तसेन उसन्तसेन और वीरसेन यही तीन नाम बिजयसेन के पूर्वपुरुषों के दिये हैं जिमसे प्रगट होता है कि बीरसेन ही वंश स्थापन कर्ता है। विजयसेन के विषय में यह लिखा है कि उसने कासरूप और कुरुमण्ड न [ मद्रास और पुरी के बीच का देश ] जय किया था और पश्चिम जव करने को नौका पर गङ्गा के तट रों सैना शेती थी। तवा. रीखों में इन गजात्रों का नाम कहीं नहीं है। कहते हैं पाईने अकबरी का सुखसेन ( वजन्तासेन का पिता ) विजयसेन का नागांतर है क्योंकि बाकर- तंज की प्रस्तर लिपि में जो चार नाम है वे विजयसेन बलालसेन लक्ष्मण सेन केशवसेन इस क्रम से हैं। वमानसेन चडा पण्डित था और दानसागर और वेदार्थ स्पति संग्रह इत्यादि ग्रन्थ उसके कारण वने। कुलीनों की प्रथा भी दलाल मेन को स्थापित है। उसके पुत्र लक्षाणसेन के काल में भी संस्कृत विद्या की वडो उन्नति थी । सट्ट नारायण ( वेणी संहार के कवि ) के वंश में धनंजय को पुत्र हनायुध परिडत उसको दानाध्यक्ष थे जिन्होंने ब्राह्मण सर्वस्त्र बनाया और इनको दुसदे साई पशुपति भी बडे सात प्रान्हिका कार थे। कहते हैं कि गौड का नगर बलालसेन वमाया था परन्तु ल ताणसेन के कान से उस का नास नदाणावती ( तरह नौती) हुआ। लक्ष्यणमेन के पुत्र साधवलेन और केशवसेन थे। राजावन्नी ने उनकी पीछे सुसेन वा शरसेन भोर लिखा है और सुसन मान ले उ को ने नौजीव ( नवहोप ? ) नारायण नव मन और लखमनिया ये चार नास और लिवे है वरञ्च ए। अशोक सेन सो लिखा है किन्तु इन राघों का ठीक पता नहीं। सुरलमानी के सत से ल- खमनियां अन्तिम राजा है जिस ने ८० बरस राज्य किया और बखतियार के कान से जिस ने राज्य छोडा । यह गर्म ही से राजा था। तो नाम का बम बीर सेन से त छस नियां तक एका प्रकार ठीक हो गया किन्तु इन का समय निर्णय अब भी न हया कोंकि किसी दानपत्र में सवत नहीं है। दा- नमागर के बनने का समय समय प्रकाश के अनुमार १०१८ शके (१.८७ ई.) है उस मे वलाल सेन का राजत्व ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त तग अनुमान हाता है और वह पाईने शकचरी वी सनय से भी मेल खाता है। बलालसेन
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