संभव है कि कन्नौज से प्राए हुए ब्राह्मणों में से जयदेव जी का वंश भी हो। इनके पिता का नाम भोजदेव और माता का नाम गमा देवी था । इन्होंने किस समय अपने आविर्भाव से धरातल को भूषित किया था यह अब तक निर्णय नहीं हुआ। श्रीयुक्त सनातन गोस्वासि ने लिखा है कि बंगा- धिपति महाराज लक्ष्मणसेन की सभा में जयदेव जी विद्यामान घे। अनेक लोगो का यही मत है और इस मत को पोषगा करने को लोग कहते है कि लती एसेन को हार पर एक पत्थर खुदा हुआ लगा था जिम पर यह श्लोक लिखा हुआ था “गोवईनश्वशरणो जयदेव उमापतिः । कविराजयरत्नानि समिती लक्ष्मनस्यच ।।" श्रीसनातन गोस्वामि को इस लेख पर अब तीन बातों का निर्णय करना आवश्यक हुआ। प्रथम यह कि लक्ष्यगासेन का कान्त क्या है। दूसरे यह कि यह लक्षणसेन वही है जो बंगालेका प्रसिद्ध लहागासेन है कि दमरा है। तोसरे वह कि यह बात शून्य है कि नहीं कि जयदेव नी लक्ष्मणसेन वो सभा में थे। प्रसिद्ध इतिहास लेखक मिरहाजिउद्दीन ने तबकारी नासरी में लिखा है जि जब बखतियार खिलजी ने बंगाला फतह किया तब न छमनिया वनाम का राजा बंगाले में राज करता था। इन के मत से लछसनिया वंग देश का अन्तिम राजा था। किन्तु बंगदेश के इतिहास से स्पष्ट है कि लछमिनिया नाम का कोई भी राजा वंगाले में नहीं हा। लोग अनुमान करते हैं कि वलालसेन के पुत्र लक्षाणसेन के माधवसेन और केशवसेन “लामनेय" इस शब्द के अपनश से लछमनिया लिखा है। __ राजशाही के जिले से मेटकाफ साहब को एक पत्थर पर खोदी हुई प्रशरित सिली है। यह प्रशस्ति विजयसेन राजा के समय में प्रद्युम्ने खर महादेव के मंदिर निर्माण के -र्णन में उमापति धर की बनाई हुई है। दामोदर जी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। वैष्णवों का यह भी एक पवित्र क्षेत्र है। बम्बई की छपी हुई पुस्तका में राधा देवी जो इन की माता का नाम लिखा वह असङ्गत है। हां वाभादेवी पौर रासादेवी यह दोनों पाठ अ- नेक हस्त लिखित पुस्तकों में मिलते है । वंगता में र ओर व में कीवल एक विंदु है भेद होने के कारण यह भ्रस उपस्थित हुआ है।
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