[ ३८ का नाम प्रासाची घा और वे दोनों चिदम्बरेश्वर को जो भायाय लिंग यसरी दछिण देश में प्रसिद्ध है भैया करने लगे और एका कन्या उन की हुई उस का नाम विशिष्टा रक्खा पाठवें दर्भ उस कन्या का विवाह विश्वजित् कारण ले कर दिया और वह विशिष्टा भी सर्व काल अपने मा बाप से - दृश उसी महादेव की सेवा करती थी उम का पति विश्वजित् उस को छोड़ कर जंगल में तप करने को गया परन्तु विशिष्टा ने महादेव की सेवा नहीं त्याग की तमा जमेशन हुआ और उस को एक लड़का उत्पन्न हुभा जिसका नाम शंकाराचाव्य रक्खा पुराण और तंत्रों में शंकराचार्य को शिवा का अवतार मिला है और इनके प्रतिवादी वैष्णव लोग भी इन को शिव का अवतार होने में कुछ विवाद नहीं करते इन के उत्पत्ति का समय अभी तक ठीका २ नहीं जात हुया परन्तु शिष्य परम्परा से नो प्राचार्य के अनन्तर भी तक चली आती है जान पड़ता है कि कुछ न्यूनाधिका ‘एक इज़ार जहुए डाकतर डाकावेल साहब अपने ग्रन्यों में ८०० वर्ष लिखता है, और पंडित जयनारायण तर्कपंचानन १२०० वर्ष के निकट अनुसान करता है। ___ उस नगर के निवासी बामणों ने इन के जात वार्मादिक संस्कार किये और तीसरे वर्ष में धौलपोर पांचवे में यज्ञोपवीत किया तब से श्रीशंकरा- पार्य जी ने शाठवें वर्ष तवा सकन्न विद्या का पूर्ण अभ्यास किया और सन्न विद्या में पारंगत हुए और शिष्यों को भी विद्या सिपहनाई पाठवें बरस में श्रीगोबिन्द योगीन्द्र को उपदेश से सम्धामात्रम स्वीकार किया और इन को रह शिष्ण बारह थे जिन के नाम पक्षपाद, इशामल का, समित्याणि, चि. विलास, जानकन्द, विपणुगुप्त, शुधकीर्ति, भानुमरीचि, कृष्णदर्शन, वुधिष्ठि विनंचिपाद, अनन्तानन्दगिरि धे इन के समय में पचास से अधिवा मत प्र- चलित थे उन में जो २ कुछ सुख सत थे उन के नाम लिखते हैं शैव, वैष्णव, लौर, गणेश, शामा, कापालिका, कौल, पांचशप, भागवत, बौध, जैन, चा- र्जाका इत्यादि पुन पक्ष मतवान्तों के प्राचार्यों उन्हीं को यालार्थ में जीत लिया और उन सब को अपना शिष्य किया। __ तब प्राचार्य जी काशी में गये और मध्यान्ह के समय मणिकर्णिका पर स्नान करते थे इतने में श्रीव्यास जी बढ़े ब्राह्मण का भेष लेकर वहां पाये और शंकराचार्य से पूछा कि मैंने सुना है कि भाप ने मनसून में बहुत परि- स किया है प्राचार्य ने उत्तर दिया हो जहां तुम्हारी पूच्चा हो वह पूछो
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