आत्सांग तिनता है कि बौदमत केवन भारतवर्ष ही में फैला न था' प- रन्तु तूरान और बाबुत में भी सौ से अधिक बिहार बने थे और उन दिनों में गजनी लावुन्न प्रत्याटि पथिम के देश इसी भारतवर्ष के राजाओं के अधीन घे सब मिल को ८. राजा गिने जाते थे जालंधर से गङ्गासागर तक और दि. नालय से महानदी तक देश कन्नौज के बौद्ध राज हर्षवर्धन के अधीन थे और सगध देश में बौद्ध राजा राज करत घे। एम से यन न ममझना चाहिए कि भारतवर्ष में वैदिकमत लुप्त हो गया था बहुत से ऐमे ऐसे देश दक्षिण में और काशी कुरुक्षेत्र काश्मीर पू- त्यादि उत्तर में घे जहां वैदिक मत के लोग रहते थे और यज्ञ यागादिक सब अपने कर्म करते थे। ___ जब इस प्रकार से व इमत भारतवर्ष फैन्स गया ईश्वर ने सोचा कि प्रच वैदिक मत डूबने पर है जो इम की महायता न करेंगे तो हम का च- लना कठिन है द्रविड देश में जो अब मंदराज हा में है चिदंबरपुर में द्राविड़ ब्राह्मण के कुन्न में सर्वज नामक तपस्वी का जन्म हुआ उस की स्त्री शैलस्तम्भः सुचारु गिरिवर-शिखरानोपमः कीर्ति कर्ता ॥ ३॥ उल्धा-राजा स्कन्धगुप्त, जिस, प्रस्थान के समय अर्थात् जब वह अपने मंन्दिर से बाहर निकलता था सैकड़ी राजानों के सिर के सुकुट उस के च- रणों पर झुकते थे. बडा यशस्वी और प्रचुर रत्न से,युक्त था उस के खर्ग वास करने से ३२१, वर्ष के अनन्तर ज्येष्ठ महीने में राजा सोमिन का बेटा भट्टि- सोस उस का बेटा रुद्रसोम उम का पुत्र व्याघ्र रति उस का बेटा मद्रसोय जिस की भक्ति ब्राह्मण, गुरु और सन्यासियों में अधिक थी जगत का संस- सरण अर्थात् दिन २;नाश अवलोकन करके वहुत भय युक्त हुा । और उस्मे अपनी और अपनी प्रजा को रचा के लिये ककुभ रति में जिस को अब कहांव कहते है और जिम.में साधु जन अधिक वसते थे जिन के रहने से वह पवित्र गिना जाता था एक यज्ञ किया । उस यज्ञ में पांच इंद्र पहाडी के वरावर अर्थात् पांचं स्तम्भ पर इन्द्र की मूर्ति बनाकर स्थापित की वह १ कहांव में २ भागलपुर में ३ सारण में ४ वेतिया से राज्य में पांचवां तराई में अव भी कई फुटाके लम्बे गड़े हुये खड़े मौजूद हैं और उन के सिवाय एक और स्तम्भ स्थापन किया जो उस को कीर्ति को प्रकाश करता है।
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