[ २४ ] में आग्रह किया तं एक रात देवगण द्वारा स्वामी को सोए में उठा कर क- मीक्षेत्र में रख दिया। जाग कर खामी ने यह चरित्र देखा और भगवदिच्छा सुख्य समस कर फिर इस विषय में भाग्रह न किया। कुछ दिन कर्माचल रहकर खामी सिंहाचल अहोबलक्षेत्र गरुडाचलादि तीथों में गए और वहां से फिर वेकंट गिरि जाकर वहां के शैवों को शास्त्रार्थ में परास्त किया। कुछ काल पीछे कूरेश को व्यास पराशर के अंश के दो पुत्न एक साथ उत्पन्न हुए । स्वामी ने एक का नाम पराशर और दस का व्यास वा श्री रामदेशिक रक्खा । इन्हीं पराशर को रंगेश ने अपुत्न होने के कारण गोद लेकर बड़े धूमधाम से विवाह किया था। गोविन्द को भी कालान्तर में पुत्र हुआ तो खामी ने परांकुश उसे का नाम रक्खा । ___मथुरा के एक धनिक धनुर्दास को उस को भार्या हेमांगना समेत खामो ने वैष्णव दीक्षा दी । यह धनुर्दाम ऐसा उत्तम वैष्णव हुआ है कि रंगनाथ जो के उत्सव में खामो एक बेर उस को मित्र को भांति पकड़े हुए थे और इस पर जब लोगों ने पुछा तो खामी ने उस के वैष्णवता की बड़ी स्तुति की। _____ उसी समय में चोल देश का एक बड़ा भारी शैव राजा निमिकंठ हुआ था जिस ने चित्रकूट तक विजय किया था। इस ने एक वेर शास्त्रार्थ के हेतु प्रार्थना पूर्वक स्वामी को बुन्ताया । खामी उस के यहां जाते थे कि मार्ग में चेलाचलाम्बा और उस के पति को दीक्षित किया । और बहुत से बौद्धों को शास्त्रार्थ में जय किया। इसी प्रकार कुछ दिन भक्त नगर में रहे। वहां खप्न खने से इन्हों ने यादवाचन जाकर वहां छिपो हुई भगवन्मुर्ति को निकाला और शके १०१२ में उस मूर्ति को यादवाचल में प्रतिष्ठा किया । ___एक वेर स्वामी को खवर मिली कि दिल्ली के राजा के घर में रामप्रिय नामक एक नारायण की मूर्ति है। खामी यह सुन कर दिल्ली गए और वहां कुछ दिन रह कर राजा से वह मूर्ति ले आए कहते हैं कि दिल्ली के राजा को बेटो उस भगवहिग्रह पर ऐसी आसक्त थो कि उस मूर्ति के साथ दो यादवाचल और भक्ति प्रभाव से आज तक उस की मूर्ति वहां नारायण के पास वर्तमान है । इसके पीछे विष्णुचित्त की बेटीगोदा को खासीने उपदेश दिया । इनके ७४ शिष्य बड़े प्रसिद्ध हुए हैं। इन में भी अभिपणे को बड़ी महिमा है ॥
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