पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२३४

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यामुनाचार्य रामानुज स्वामी को देखने के हेतु कांचीपुर चले और मार्ग में हस्तिगिरि नारायण के दर्शन के हेतु और अपने शिष्य कांचीपूर्ण से मिलने को हस्तपुर में ठहरे। संयोग से रामानुज खामी आदि शिष्यों के साथ यादव पंडित भी हस्तिगिरि नाथ के दर्शन को पाए थे । वहां कांची- पूर्ण ने प्राचार्य से स्वामी का परिचय कराया और आचार्य इन को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और कुछ दिन के पीछे सव लोग अपने २ नगर गए । एक दिन मानुज खामी अपने गुरु यादव पंडित को तेल लगाते थे । उसी समय 'कप्यास्य' इस श्रुति का अर्थ यादव ने कुछ अशुद्ध किया इस से स्वामी को बड़ा कष्ट हुआ और शास्त्रार्थ में खामी ने यादव को परास्त किया इस से यादव ने क्रोधित होकर स्वामी को निकाल दिया। स्वामी वहां से हस्ति- गिरि चने आए और कांचीपूर्ण के उपदेश से हस्तिगिरिनाथ वरदगन ना- रायण को सेवा करने लगे ।

यह वृत्तान्त सुन कर यामुनाचार्य ने अपने शिष्य पूर्णाचार्य को अपने बनाय स्तोत्र देकर हस्तगिरि भेजा। एक दिन वरदराज खामी के मामने पूर्णाचार्य वह सव स्तोत्र पढ रहे थे कि रामानुज स्वामी ने सुन कर और उन की भक्तिपूर्ण रचना से प्रसन्न हे कर पूर्णाचार्य से पूछा कि यह स्तोत्र किस के बनाए हैं। पूर्णाचार्य ने कहा कि यह सव स्तोत्र यामुनाचार्य के बनाए हैं और वे आप के दरशन की बड़ी इच्छा रखते है । पूर्णाचार्य को उपदेश से रामानुज स्वामी यामुनाचार्य से मिलने रंगपुर चले और मार्ग में महापर्णाचार्य से मिन्ताप हुआ। खामी का भाना सुन कर यामुनाचार्य भी भागे से उन को लेने चले किन्तु कावेरी के किनारे पहुंच कर शरीर छोड़ दिया स्वामी भी शीघ्रता से वहां पहुंचे तो देखा कि प्राचार्य ने श- रीर छोड़ दिया है परन्तु तीन अंगुन्नी उठाय हुए हैं । खामी ने प्राचार्य का आशय समझ कर [अर्थात् १ बौधायन मतानुसार ब्रह्मसूनादि का भाष्य बनाना २ दिल्ली के तत्सामयिक वादशाह से श्रीगममूर्ति का उद्धार करना और ३ दिग्विजय पूर्वक विशिष्टाईत मत का प्रचार ] प्रतिज्ञा किया कि हम आप को इच्छा पूर्ण करेंगे जो सुन कर मुखपूर्वक प्राचार्य वैकुंठ धाम गए और स्वामी भी कांची फिर- आए । एक वेर कांचीपूर्ण के घर खामी भोजन करने गए थे तव कांचीपूर्ण ने स्वमत विषयक उन को अनेक उपदेश किया और कहा कि आप रंगपुर जाकर पूर्णाचार्य से सव अन्य पदिए।