[ १४ ] विक्रमादिता ने छोड़ा तब से वे बड़े शोक सागर में डुवे थे। नवरत्नो में कबि- वर कान्ति दास ही अनमोल रत्न था इस के सिवाय जब राजा को राज काज के कामों से फुरसत मिलती थी तब कोवल कबिराज कालिदासही की अद्भुत कविताओं को सुनकर राजा का मन प्रफुल्लित होता था। इस लिये ऐसे गुणी मनुष्य के बिना राजा का सब बस्तुओं से मन उदास होने लगा। फिर राजा ने कविराज कालिदास का पता लगाने के लिये सब देशों में दूतों को भेजा जक कहीं पता न लगा तब राजा आप ही मेष बदल कर खोजने के लिये निकले। कई देशों में घूमते फिरते जब करनाटक देस में गए उस समय उन्हें पथव्यय के लिये एक होरा जड़ी हुई अंगठी के छोड़ और कुछ नहीं था। उस अंगठी को बेंचने के लिए वे किसी जौहरो को दूकान पर गए । रन पारपी ने ऐसे दरिद्र के हाथ में ऐसी अनमोल रत्न जड़ित अंगूठी को देख कर मन में चोर समका और कोतवाल के पास भेजा। कोतवाल राज सभा में ले गया। वे चारो ओर देखते भालते जो आगे कढ़े तो कविबर कालिदास को देखा और कहा सहाराज मैंने जमा किया वैसाही फल पाया। कविवर कालि- दास उठकर राजा को अंक में लगाकर करनाटक देशाधिपति से परिचय करा और सब ब्योरा कहकर राजा विरविक्रमादिता के साथ चलापाया। ___पर इन कथाओं से भी वही संकट पाईजाती है और कविवर कालि- दास का समय ठोक निश्चय होना कठिन है । ___ कोई कोई कहते हैं कि कविदर कालिदास की सहायता से एक ब्राह्मण ने राजा भोज से एक श्लोक पर अनेक रूपया इस चतुराई से लिया था । उज्जैन नगरी में राजा भोज ऐसा विद्या रसिक और गुणन और दान शोन्न था कि विद्या की वृद्धि के प्रयोजन से उस ने यह नियम प्रचलित किया था कि जो कोई नवोन आशय का श्लोक बनाके लावे तो उस को लाख रु- यये दक्षिणा देवे इस बात को सुन के देश देशांतर के पंडित लोग नये आशय के श्लोक बना के लाते थे परन्तु उस की सभा में चार ऐसे पंडित थे कि एक को एक बार टूमर को दो बार तीसरे को तीन बार और चौथे को चार बार सुनने से नया लोवा कंठस्थ हो जाता था सो जब कोई परदेशी पंडित राजा को सभा में नवीन आशय का श्लोक बना के लाता तो वह राजा के सम्मुख पढ़ के सुनाता था उस समय राजा अपने पंडितों से पूछता था कि यह सोका नया है वा पुराना तब वह मनुष्य जिस को कि एक बार के सुनने
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