[ ८ ] श्री देव कृत विक्रामचरित में जिला है कि विक्रमादितां तीर्थंगकर बई- सान के नाश होने को ४ ७० वर्ष परे उज्जयिनी में राज्य करते थे और उन्हीं ने ही संवत स्थापन किया है परन्तु इस अन्य में कालिदास का नास भी नहीं लिखा है। पंडित तारनाथ तर्कवावस्यति वाहते हैं कि महा कवि कालिदास ने 'रघुवण' 'कुमारसमव' और 'मेघदूत' बनाने के अनयर ३०६८ कलिगताब्द में “ ज्योतिर्विदाभरण' नामक काल ज्ञान शास्त्र बनाया मेघदूत प्रकाशक पाच प्रान नाथ पंडित सहाशय ने भी इस बात को अपने भूमिका में लिखा है परन्तु यह किमी का प्रत्य नहीं दृष्टि पड़ता कि 'ज्योतिर्विदा भरणा' रघुकार कालिदास रचित है। तर्क चाचस्पति माशय के मत को सहायता देने के निमित " ज्योतिर्लिदाभरण" के कतिपय लोकों का अनुवाद करके हम नीचे लिखते हैं जैमा कालिदास ने लिग्ना । मैंने इम प्रफुनकर ग्रन्थ को भारतवर्षान्तरगत मानव देश (जिस में १८० नगर हैं ) में राजा विक्रमादिता के राज्य के ममय रचा है ॥ ७ ॥ शंका, बरमचि, मणि, अंशदत्त, जिष्णु, त्रिलोचन हरि, घटकर, श्रमर सिंह और २ बहुत से कवियों ने उन के सभा को सुशोभित किया था ८॥ ____ मता, बराहमिहिर, अतिमेन, योषादरायणो, भनिष्व, कुमार सिंह और कई एक महाशय ज्योतिशास्त्र के अध्यापक घे ॥ ८ ॥ धन्वन्तरि, क्षपगाक, अमर सिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, कालिदास और वरामिहिर और वररुचि ये मब सहाशय विक्रम के नवरत्न थे ॥ १० ॥ विक्रम के सभी में ८०० छोटे २ राजा और उन के महा सभा में १६ वाग्मो, १० जयोतिपि ६ वैद्य और १६ वेद पारग पंडित उपस्थित रहते घे॥११॥ कोई कहते हैं कि यह कवि, मानवे के गजा इर्ष विक्रमादितत्र के स- मय हजरत ईमा की छठवीं सदी में था । उस राजा को राजधानी उज्जैन नगरी थी । इसी कारण कालिदाम भी वहां गया । राजा विक्रम की मभा में रन थे, उन में से एक कान्निदाम था। कहते हैं कि लड़कपन में इम ने कुछ भी नहीं पढ़ा जिला, केवल एक स्त्री के कारण इसे यह अनमोल विद्या का धन हाथ लगा। इम को कथा यो प्रसिद्ध है, कि राजा शरदानन्द को लड़को जिद्योत्तमा वड़ो,पंडिता यो, उस ने यह प्रतिज्ञा की, कि जो सुम शास्त्रार्थ में जीतेगा, उसी को न्याहंगी। उस राजकुमारी के कप, यौवन
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