[ ७ ] मिथ्या कल्पना किया है कालिदास ने कोई भी ग्रन्थ में अपना वृतान्त कुछ भी नहीं लिखा है केवन्त एतनाही प्रगट किया है। धन्वन्तरिक्षपणकोमरसिंहशंकावेतालभट्टघट खरकालिदासाः । ख्यातोबराहमिहिरोन्नृपते:समायरित्नानिवैवररुचिर्नवविक्रमस्य ॥ केवल इतनाही परिचय नवरत्नों का लिखा है अभिज्ञान शंकुतल ग्रन्य- कर्ता इतनेहीं परिचय से सन्तुष्ट न रह के और २ संस्होत ग्रन्थों से इस विषय का अनुसंधान करना उचित है प्रायः ५.० वर्ष का हुए कि कोलाचत म- ल्लिनाथ सरि ने कालिदास कृत काव्यों की टीका की है उन्हों ने यह टीका दक्षिणाव नाथ को टोका देख कर वनाई परन्तु वह अब दुष्प्राप्य है भाषा- तत्ववित लासेन साहव ने यह लिखा है कि कालिदाम ईखी दो संवत में समुद्र गुप्त की सभा में वर्तमान घे लासेस ने एक पत्थर देखा था जिस पर यह लिखा था कि “ ससुद्र गुप्त कवि बंधु काव्य प्रिय" और इसी से वह अनुमान करते हैं कि कविश्रेष्ठ कालिदास उन के सभासद थे । वेटतीने एशियाटिक नामक पत्रिका में भीज प्रवंध का फारसीसी अनुबाद और “आइने अकवरी” को ख कर लिखा है कि भोज राजा के राज्य के ८.० वर्ष पश्चात् विक्रमादित्य के सभा में कालिदास वर्तमान धैं परन्तु यह बात कापि नहीं हो सकता बेल्टी ने खोय ग्रन्थों में कई एक ऐसी अशुद्ध वातें लिखी हैं जिस के पढ़ने से वोध होता है कि वह हिन्दुओं का इतिहास कुछ भी नहीं जानते। ___ कर्नेल उद्लफोर्ड, प्रिन्सेप, और एलफिनसून ने लिखा है कि कालिदास प्रायः १४०० वर्ष पूर्व वर्तमान घे । ____ भोज प्रबंध के प्रमाणानुसार गुजरात मालव और दक्षिण के पंडित क- ह हैं-कालिदास सन् ११०० ईसवी में भोजराजा के सभासद थे उ- ज्जैन के राजसिंहासन पर कई विक्रमादित्य और भोजराज नामक राजा बैठे परन्तु सब से अंत के भोज राज तो संवत ११०० ईसवी में राज्य करते थे। और इस से बोध होता है कि अंत के बिक्रम हो को भोजराज कहते नै और उन्हीं की नवरत्न को सभा यो हम खयं "भोजप्रवध " पाठ कर देखा कि है उस में यह लिखा है कि मालव देशांतर्गत धारानगराधिप भोज सिन्धुल के पुत्र और मंजर के वाटपुत्र थे भोज के बाल्यावस्था में उन
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