गया था कहते हैं कि राजिक इस के बड़े भाई सोमदेव का मित्र था इस से शाजिक की ओर से सोसदेव भी लड़ने को आया था यह लड़ाई बड़ी तैया- री से हुई और सोमदेव अन्त में पकड़ा गया राजिक भागा और विक्रमादि- त्य अपनी बाप को गद्दी पर बैठा काहाट के राजा को कन्या ने खयम्बर किया था जिस में विक्रमादित्य भी गया था; विल्हण ने यहां पर राजाओं को खमाविक अभिमान और काम की चेष्टा के घर्णन में बहुत ही अच्छी खभावोक्ति दिवाई है और 'पारसीक तैल' के नाम से आतशवाजी के भांति को किसी वस्तु का वर्णन किया है स्वयम्बर में विल्हण ने नीचे लिखे हुए राजाओं का वर्णन किया है जिस से प्रगट होता है कि इतने राज उस समय अलग २ वर्तमान और अच्छी दशा में थे, यघा अयोध्या, चन्दची, कान्य- कुज । ( अर्जुन के कुल का राजा) चम्बल के तट का देश, कालिंजर, गो- पाचल, मालव गुजरात, मन्दराचल के समीप का पांघदेश और चोल । कन्या ने जयमाल विक्रमादित्य के गले में डाली और बड़ी धूमधाम से इस का विवाह हुश्रा । इस राजा के बहुत से ऐश्वर्य और बिहार वर्णन के पीछे विल्हण लि- खता है कि एक दिन विक्रम ने दूत के मुख से सुना कि उस का छोटा भाई बागी होगया है और चेंगों जीतने को पीछे विक्रम ने जो उसे देश और सैना दो थो उस पर सन्तोष न करके बहुत से सिपाही नौकर रख के सारे दक्षिण में लूट मार करता फिरता है और द्रविड़ के राजा [शायद विक्रम का साला ] ने उसे बहुत ही बहकाया है और छोटे २ बहुत से उपद्रवी राजा उसे मिल गए हैं। यह सुन कर बहुत पछताया और सेना लेकर बाहर निकला जब भाई की सैना के पास इस का डेरा पहुंचा तो इस ने दतों के और पत्रों के द्वारा उस को बहुत समसाया पर वह न माना और प्रान्त में विक्रम से हारकर कहीं दूर जा रहा विक्रम फिर- सुख से राज्च करने लगा एक बेर कांची पर फिर चढ़ा था क्योंकि वहां का राजा फिर गया था, कवि ने विक्रम को खभाविक बहुत से गुण लिखे हैं जिन में उदारता का बहुत ही सविशेष वर्णन है इस ने ५१ वर्ष राज्य किया था। जपर के लिखे अनुसारे लोगों की विक्रम का जीवनवृत्त विदित होगा क- वि ने उस में जोजो सदगुण लिखे हैं वह उस में रहे हीं पर अपने दो भाइयों को उस ने जीता और बड़े भाई को कैद करके श्राप गद्दी पर बैठ इस्स उस को
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