दिन गुजरात में रहकर अपनी कविता से लोगों को प्रसन्न करता रहा अब यह दक्षिण में चोल देश में गया तो वहां के राजा से इस्को विद्यापति की पदवो मिली उस की माता का नाम नागादेवी था करण के दरबार में गंगा- धर कवि के मुकाबले में राम जी के चरित्र में काव्य बनाया यह अपने ग्रन्थ में लिखता है कि किसी कारण से वह राजा भोज से न मिल सका विक्रमांक चरित्र उस ने अपने बुढ़ापे में बनाया विदित रहे कि विल्हण ईसवी ग्या- रवें शतक के मध्य और अन्त भाग में हुया है क्योंकि विक्रमादित्य ने (जि- स्के दरबार का यह पंडित था ) सन १०७६ से ११२७ तक राज्य किया था। विल्हण की कविता में कई बातें विशेष जानने के योग्य हैं जैसा उस ने कादम्बरी का अपने ग्रन्थ में वर्णन किया है जिससे स्पष्ट जाना जाता है कि वाण कबि विलहण के पहिले हुआ है और उस के समय में भी बाण की कविता का माधुर्य भारतवर्ष में फैला हुआ था फारसी ( शिकस्त ) के चाल के कोई अक्षर विल्हण के समय में कश्मीर में लिखे जाते थे क्योंकि उस ने कश्मीर के वर्णन में लिखा है कि जहां कायस्थ लोग अपने लिखावट को जाल से किसी को ठग नहीं सकते थे विल्हण गुजरातियों से बहुत ना- राज था क्योंकि वह लिखता है कि गुजराती राक्षसी बोली बोलते हैं और लांग नहीं बांधते पौर मैले होते हैं, विल्हण के बाप ने सहाभाष्य पर कोई तिलक विाया था परन्तु अब वह नहीं मिलता विल्हण को कवि- ता वैदर्भी और भोज और प्रसाद गुण से पूर्ण है। कविता से जहां कवि के और गुण प्रगट होते हैं वहां साथ ही उस का अभिमान उद्दण्डता और परिहास का खभाव भी पाया जाता है। * इसी कावि ने विक्रमादित्य का चरित्र अठारह सों में कहा है इस स- सय हम इस बात का झगड़ा नहीं ले बैठते कि विक्रम कितने भए और किस २ समए में भय यहां पर हम केवल उस विक्रम का चरित्र वर्णन
- विल्हण का यह स्फुट लोक मिला है जिसे उस का अभिमान स्पष्ट
प्रगट होता है। वासः शुस्मृतुर्वसन्तसमयः पुष्प शरन्म ल्लिका । धानुष्कः कुसुमायुधः परिमल: कस्त रिका ऽस्त्र वनु: ॥ वाणीतर्वरसोज्वला प्रियतमा श्यामावयो यौवनं । देवोमाधवएवपंचसलया गीतिकविविल्हणः ॥ १ ॥