-वितावलो। ouccee विव्राम चरित्र । इम के पूर्व कि हम विक्षामादित्य का कुछ चरित्र लिखें हम को श्रो मद् बुहतर साहब का धन्यवाद करना चाहिए जिन्हों ने विक्रमांक चरित्र नाम ग्रन्य खोज कर प्रकाश दिया। यह श्रीहर्षचरित्र के चाल का एक दुसरा ग्रन्य है जो अब प्रकाश हुआ यह ग्रन्य विल्हणकवि का है और अनेक छन्दों में अठारह सर्ग में लिखा हुआ है इस के सत्रह सौ में विक्रमादित्य का चरित्र और अठारहवें सर्ग में कवि ने अपना वर्णन किया है। प्रसिद्ध है कि चौरपंचासिका इसी विल्हण की बनाई हुई है कहते हैं कि गुजरात के राजा बैरोसिंह की वेटी चन्द्रलेखा वा शशिकला को विल्हण पढ़ाता था और उस ने उसे गन्धर्व विवाह भी किया था जव राजा ने इस बात से क्रुद्ध होकर विल्हण फांसी दी आज्ञा दिया रस्ते में इस ने चौरपंचा- शिका बनाई निस्से प्रसन्न होकर राजा ने फांसी के बदले अपनी कन्या को वांह उस्के गले में डाली इन कथाओं पर हमारा कुछ ऐसा विश्वास नहीं क्योंकि इस अन्य में विल्हण ने इन बातों को कहीं चरचा भी नहीं की है। विल्हण अपना हान्न यों लिखता है कश्मीर के देश में जिहलम और सिन्ध के मुहाने पर प्रवरपुर नाम का वडा सुन्दर नगर था अनन्त देव वहां का वडा प्रतापी और धार्मिक राजा था जिस की रानी का नाम सुभटा था उस रानी का भाई क्षितिपति भोज के समान कवियों का गुण ग्राहक और वड़ा विष्णुभक्त था । अनन्त का वेटा कलश हुआ और कलश के पुत्र हर्षदेव और विजयमल प्रवरपुर के पास ही विजयबन में खीनमुख नाम का एक गांव था जहां कुशिक गोत्र के ब्राह्मण वसते थे जिन को गोपादित्य मध्य "श से वडे आदर से नाया था उन ब्राह्मणों में सुक्तिकलश सब से सुख्य था और उस की राज्य कलश और राज्य कलश को ज्येष्ठ कलश पुत्र हुआ ज्येष्ठ कलश को इष्टराम, विल्हण, श्रानन्द तीन पुत्र थे विल्हण व्याकरण और काव्य अच्छी तरह पढ़ा था और श्री वृन्दावन में बहुत दिन तका उस- नकाल बिताया और फिर कन्नौज, प्रयाग, बनारस और अयोध्या में फिरता रहा और फिर कुछ दिन दाहाल के राज्य में कुछ दिन धार में और कुछ
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