[ ३५ ] ६१८२ माधमासि कृष्णपक्षे पञ्यांतिथौ भृगावापर्तः प्रीवमतीस्थलेगङ्गायां स्नात्वा विधिवन्मन्त्रदेव मुनिमनुजभूत पितृगणां स्तर्पयित्वा तिमर पटल पाटन पटुमहसमुद्धचिपमुपस्थायौपधिपतिसक्लोखर सम यर्च्य त्रिभूवनत्राता- सुदेवस्य पूजां विधायप्रचुरपायसेनहविपा हविर्भुजंहुत्वा मातापित्रो रात्मनश्च पुण्ययशो- भिवृद्धयेऽस्माभिरग्रे करणकुगलतायुतकमतुलोदक.. पूर्वगौतमगौत्राम्यांगौतमाङ्किर समुद्गलत्रिः प्रवराभ्यांठक्कुर श्रीआल्हनपुत्राभ्यां श्रीछीछट श्रीवाछट शर्माभ्यां आच- न्द्रार्क यावच्छासती कृत्यप्रदत्तामत्वा यथा दीयमानभागभोगकर प्रवणिकरंतुरुप्कदण्ड सर्वादायानाज्ञां विवेकीभूयक्षान्तव्योति । भवान्तचात्र श्लोकाः । भूमियःप्रतिगृहणाति यश्चेभूमिप्रयच्छति । उभौ तौपुण्यकर्माणौ नियतस्वर्ग- गामिनौ ॥१॥ सम्बन्धमासनछत्रं वराश्वाबरवारणाः।भूमिदानस्यचिन्हानि फलमेतत्- पुरंदर ॥२॥ सर्वानेतान्भाविन.पार्थि वेन्द्रान्भूयोभूयो याचतेरामचन्द्रः। सामान्योड्यं- धर्मसेतुर्नृपाणां कालेकालेपालनीयो द्रः॥२॥ वहुभिर्वसुधाभुक्ता राजभिःसगरादि- मिः॥ यस्ययस्ययदा मिस्तरयस्तस्यतदाफलम् ॥४॥गामेकां स्वर्णमेकञ्च भूमेरप्येकम- गुलम् । हरन्नरकमाप्नोति यावदाहूत संपप्लवम् ॥१॥ तडागानां सहस्रेणाप्यश्च मेधशते- नच। गवांकीटप्रदोनन भमिहर्त्ता न गद्धति" ॥ ६ ॥ इति । नागमंगला का दानपत्र । थोरगपट्टन से १५ कोम उत्तर नागमंगन्न शहर में एक मन्दिर है । वहां पर निम्नन्निखित लेख६ ताम्रपत्रों पर खोदा हुआ मिला है जो कि एक मोटे धातू के कडे से वेधित है ये पत्रे १० इंच लंबे और ५ इंच चौडे है। इस लेख से ज्ञात होता है कि पृथिवी निगुड राजा की स्त्री कदेवी जो पल्लवाधिराज की पोती थी उम ने शके ६८८ में एक जैन मन्दिर स्थापित किया था इमी के महायता के कारण उसके पति को विनय स्कन्धावार के महाराज पृथ्वी कोगणि मे उसके राज्य प्राप्ति के पचास बरस वाद प्रार्थना करने पर यह दानपच मिला था। मर्कए के पत्रों के लेख मे मिलता हुआ कुछ कोएगू रानाभों का उत्ता- न्त इस लेख के पूर्व में है जो सन् ४६६ से प्रारंभ होता है इन लेखों में के- वल इतना ही अन्तर है कि इस में प्रथम महाराज का नाम कोउगणी वर्म धर्म महाधिराज और छठे का कोगयी महाधिराज लिखा है और केवल
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