पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२००

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। ३३ । पुत्र ठर चुप्पठ शर्मा को कलिंगदेशान्तर्गत खाताबी परगने के छीकल पग्गने का पसेमरी और कारंम नामक दो ग्राम दे कर इसके सीर सायर प्राकाम पातान्न खेत खर्च ट वाटी तिवारी जल थल सव पर इनका अधिकार करते हैं इन के वंश का जो होय वन उस को मानै कोई कर नहीं लगेगा। मि. चैत्र शुद्ध १ मं० १८८ विक्रम के न्तिख सूत्रधार प्रबासी राय और ब्राह्मण ब्राह्ममय ने शुभ।। (इम के आगे ये श्लोक लिखे हैं) ये मर्वेस्य विनः पार्थिवेन्द्रान् तेभ्यो भूयोयाचते रामचन्द्रः । सामान्योऽयं धर्मसतुळे पाणां काले काले रक्षगीयो भवद्भिः खदत्तां परदत्तां वा ब्रह्मवृत्ति हरेत्तु यः। षष्ठि वर्ष सहस्राणि विष्ठायां जायते क्रिमिः । शुभम् श्रीः ॥ पनौज का दानपत्र । यन् दानपत्र राजा गोविन्द चन्द्र कन्नौज के राजा का है जो दिल्ली के वादगाहो खजाने मे सिखलोग लाहोर लूट करीले गए थे और अव श्री पंडि- त राधाकृष्ण चीफ पण्डित लाहोर ने उसकी एक प्रति हमारे पास भेजी है, इम गजवंश का पूर्व स्थापक गाहरवाल राजा था और करन इसका अन्तिम राजकुमार हुआ । उसी वंश को एक शाखा सहिपाल में ( वा महिपाल का पुत्र) भोज हुआ। जिसका काल ८८५ खी है। इन भोज और करल्ल की कोति मसाप्त होने के पीछे उसी वंश की शाखा में यशोविग्रह राजा हुआ जमका पुत्र महीचन्द्र उस का पुत्र चन्द्रदेव उसका पुत्र मदनपाल और उस मदनपाल का.पुत्र गविंदचन्द्र था जिसने यह दान किया है । यह राजा ऐमा दानी था कि इसके दिये हुये गावी के शतावधि दानपत्र मिले है ये ले ग वैष्णव वा वैष्णों के अनुयायी थे क्योंकि इन के दानपत्रों पर गरुड का चिन्ह है और गोविंदचन्द्र की मोहर पांचजन्य शंन है। 'अकुण्ठोकण्ठ' यह शोक प्रायः टानपत्नी पर है। यह दानपत्र संवत् १९८२ में माघ वदी शुक्रवार को ग्रीवमती (?) तीर्थ में गंगा में स्नान करके राजा गोविंदचन्द्र