[ २२ ] इन में वेणु के पुत्न सगर के पौत्र दीपसिंह के प्रपौत्र नाभाग और विशंकु नासक दो राना हुए ॥९॥ ___ नाभाग को भोज मदमन और भगवान तीन पुत्र और विशंकु को वा- वन नासक एक पुत्र था ॥१॥ वावन को गौरचन्द्र और इनमान दो पुत्र हुए जो अव तमसा से कृष्णा तक नीलगिरि से हिमगिरि के प्रान्त तक राज्य करते हैं॥११॥ इन के अभिषेक के जन्म कण से और हाथियों के मद से तथा शरी के परिश्रम और रति शूरों के खेद जल और इन के शत्र ी की स्त्री के नेत्र जल से मिल कर इसकी दान जलधारा नगर के चारो ओर खाई सी वन- रही है ॥ १२॥ जिन लोगों को ये जीतते थे उनको ऐसी दुर्गति होती थी कि वे अन्न वस्त्र को भी दीन हो जाते थे तथापि ये ऐसे दयालु थे कि यही मान उन के शरण होते घे ॥ १३॥ प्राचीन कर सब इन लोगों ने क्षमा कर दिए इन के काल में केवल पाठ दस कर बच गए उस पर भी प्रजा को दुःखी देख कर ये उन का बड़ा प्रति- पालन करते थे ॥ १४ ॥ वरंच ये ऐसे दयालु घे कि और राजाओं की भांति आप कर लेने में ये ऐसे लज्जित होते थे जिसका वर्णन नहीं इसी से पाठशाला धर्मशाला इ- त्यादि धर्म कार्य के हेतु कर संग्रहीत होकर उन्ही कामों में व्यय होता था ॥ १५॥ शुकलानधान उसी को समझते थे जो इन के जातिवाली की नौकरी वा वनज के मिस आवे॥१६॥ लक्ष्मी के एक मात्र आश्रय सरस्वती के पूरे दुर्गा के वर्ग तीनों शक्ति से ये सम्पन्न और त्रिदेव पूजन के बड़े आग्रही घे ॥ १७॥ इन धमावतारों ने पंपासर तीर्थ पर चन्द्रमा के पूर्ण ग्रास पर फाल्गुनी पौर्णिमा संवत् १८७ पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र व्यतीपात योग वैद्रथ करण शनिवार कन्या पर गुरु मेष पर शुक्र मीन पर सूर्य कुम्भ चन्द्रमा मिथुन में बुध करकट में मंगल और शनि में पंपासर तीर्थ में स्नान कर परम धा- र्मिक परमेखर परम माहेखर भट्टारक महाराज गौरचन्द्र तथा हनुमच्चन्द्र सुडालगोत्र गर्गाङ्गिरस मुड़ाल हिजवर टक्कुरनासी के पौत्र ठकुर उन्बट के
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