पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१९३

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धाग तो सानी जैनों को राजधानी है कारण ऐसा अनुमान होता है कि प्राचीन कान्त में काशी उधर ही वसती थी क्योंकि सा नाथ वहां से पास ही और मैं वहां मे क जैन मूर्ति के सिर उठा लाया हूं। ऐसी भी जनश्रुति है कि महादेवभट्ट नामक कोई ब्राह्मण था उसी ने पंचक्रोशी का उद्धार किया है॥

सुझे शिव मति अनेक प्रकार की मिली हैं। पंचमुख दशभुज २ एक सुख द्विभुज ३ एका मुख चतुर्भुज ४ पद्मपर से पैर लटकाए हुए बैठे और पाब्बती गोद में बैठी ५ पालथी मारे ६ पार्वती को अलिंगन किए हुए इत्यादि तो इस अनेक प्रकार की शिव मूर्तियों की प्राप्ति से शंका होतो है कि आगे लिंग पूजन का आग्रह नहीं था।

काशी में किसी समय में दश नासी गोसाइयों का वडा पावल्य था और इन मन्गत्माओ ने अनेक कोटि मुद्रा पृथ्वी के नीचे दवा रक्खी है अतएव अनेक तास पत्र पर वीजक लिखे हुए सिलते है पर वे द्रव्य कहां हैं इस्का पता नहीं। इन गोसाइयों ने अनेक बडे बडे मठ बनवाए थे और वे सवसे दृढ वने में कि कभी निल भी नहीं सकते। इन गोसाइयों में पीछे सद्यपान की चाल फैली और इसी से इन का तेजोनाश हुआ और परस्पर की उन्मत्तता और अदालत की कृपा से इनका सब धन नाश हे गया पर अयापि वे बडे बडे म० खडे हैं। इन गोसाइयों के समय में भैरव की पूजा विशेष फैली थी। कालिज में एक विस्तीर्ण पत्थर पडा है उस पर एक गोसाईयों के बनाए मठ और शिवाले औ- उस्की विभूति का सविस्तर वर्णन है मै उस्को ज्यों का त्यै आगे प्रकाश करूंगा जिस्से वह समय स्पष्ट हो जायगा।

यहां जिस मुहल्ले में मैं रहता हूं उस को एक भाग का नाम चौखम्भा है एसका कारण यह है कि वहां एक मसजिद कई सै बरस की परम प्राचीन है उमका जुतवा काल वल से नाश होगया है पर लोग अनुमान करते हैं कि ६६४ बरस की बनी है और, मसजिदे चिहल सतन, यही उसको 'तारी-चतु' है पर यह हद प्रमाणी भूत नहीं है। इस मसाजद में गोल गोल एक पंक्ति में पुराने चाल के चार खंभे बने हैं अतएव यह नाम प्रमिद्ध हो गया है।यही व्यवस्था ढाई कनगरे के मसजिद को है, यह मसजिद भी नड़ी पुरानी है अनुमान होता है कि मुगलों के कात के पूर्व को है इसकी निसिंति का मान में १०५८ ई. बतलाते है। इससे निश्चय हे ता है कि इस