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निन्दा की है। और ग्रन्यकारों के मत से श्री हर्ष बड़ा न्यायपरायण स्वयं सहा-कवि अति उदार था। पुकार सुनने के हेतु महल की सीत्तियों पर घंटियां लटकती थीं। रात दिन गुणियों से घिरा रहता था और अन्त में संसार को असार जानकर त्यागी हो गया। कल्हण से हर्ष राज से हेच का यह कारण है कि इस को खामी जयसिंह का बाप सुस्माल हर्ष के पोते भिचाचर को सार कार राज्य बैठा था।