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किन वंश में और विस समय में उत्पन्न हुगा था। ऐमा भी राजा मान का एक जनाना घाट है जो गली को शांति ऊपर से पटा है पर अब इसके ऊपर व्रह्मनान्न की सडक चलती निशय है कि योहोहारों के नीचे अनेक राजाओं के वनाए घाटों के चिन्ह मिलैगे । हम आजकल में मणिक र्णिका पर मे एक प्राचीन पत्थर उठा लाए हैं जिससे उस समय का कुछ वृत्तान्त मिलता है । यह पत्थर संवत् १३५८ तेरह से उनसठ का लिखा है जो ईसवी सन १३०२ के समय का होता है। इसके बाचर प्राचीन काल के हे और मात्रा पड हैं पर शोच का विषय है कि पूरा नहीं है कुछ भाग इसका टूट गया है इस्ले नाम का पता नहीं लगता कि किस राना का है जो कुछ वृत्त उस्ले जाना गया वह यह है। " उक्त समय में क्षत्रिय राजा दो भाई बड़े विष्णुभक्त और ज्ञानवान हुए और इनकी कीर्ति परम प्रगट थी उन लोगों ने मणिकर्णिका घाट बनवाया उम घाट के निर्माण का विस्तार वीरेश्वर से विश्वेश्वर तक था और मध्य में मणिकर्णिकेश्वर का बड़ा लम्बा चौडा और ऊचा मंदिर बनाया और बीच में बड़ी बड़ी वेदिका बनाई ( वेदिका चवतरे को कहते)यह राजा वडा गुणन या" इतवादि। इरो निश्चय कि उसकी वनाई कोई वस्तु शेष नहीं रही। अव जो मणिकर्णि-केयर है वह एक गहिरे नीचे संकीर्ण स्थान में है और विश्वखर और वीरेश्वर भी नए नए स्थानों में है। ऐमा अनुमान होता है कि गंगाजी गागे ब्रह्म-नान की ओर बहुत दच के वहती थीं क्योंकि अद्यापि वहां नीचे घाट मिनते है। निश्चय नै कि इस राजा के पीछे भी अनेक वार घाट बने होंगे परन्तुअब जो कुछ ट्टा फूटा घाट वचा है वह शहल्याबाई साहब का बनाया है।
मणिकर्णिका कुंड की सिदियां जो वर्तमान हैं वह दो सै उनचास २४८वर्ष को बनी हुई है और इनको नारायणदास नामक वैश्य ने ( जिसका पुकारने का नाम नन था) वनवाई हैं यह सोमवंशी राज वासुदेव का मंत्रो था और रावत इसके पिता का नाम था यह बात इन लोने से प्रगट होती है जो वहां एक पत्थर पर खुदे मिले हैं।व्योमाष्ट षट् चन्द्रमिते णुभेन्दौ मासे शुची विष्णुतिथौ शिवायां । चकार नारायणदासगुप्तः सोपानमेतन्मणिकर्णिकायाः ॥ १ ॥ जातः क्षिती वासवतुल्यतेजा: सोमान्वये भूपति वासुदेवाः