गङ्गाीभिन्नमन्मो न च पिवति जयल्येषजल्लालुदीन्द्रः ॥ ३ ॥ अङ्ग-वङ्ग-कलि झं-सिलिहष्ट-तिपुरा-कासता-कासरूपा नान्धं कीट लाट. द्राविड़-मरहट द्वारका-चोल-पण्डग्रान् । भोटान्नं मारूवारोत्कलमल यखुरासानखान्धार जाम्बू ॥ . . काशी-काश्मीर ढका बलक-बदखशा-काबिलान यः प्रशास्ति ४ कलियुगमहिमाऽपची यमानश्रुतिसुरभिहिजधर्मरक्षणाच । धृतसमुप तनु तमप्रमेयं पुरुषमकव्वरशाहमानतोसिम ॥५॥ अर्थ----जो समुद्र से मेरू तक पृथ्वी को पालता है, जो मृत्यु से गउओं की रक्षा करता है, जिसने तीर्थ और ब्यापार के कर छुड़ा दिए, जिसने पुराण सुने जो सूर्य का नाम जपता, जो योग्य धारण करता है और और गंगा जल छोड़ कर और पानी नहीं पीता उस जलालुद्दीन की जय ॥ ३ ॥ .. - अंग वंग लिंग सिलहट तिपुरा कामता . ( कामटी ? ) कामरूप, अंध कर्णाटक लाट द्रविड़ महाराष्ट्र द्वारका चोल पांड्य भोट मारवाड़ उड़ीसा मलय खुरासान कंदहार जम्बू काशी ढाका बलख बदखशा और काबुल को जो शासन करता है ॥ ४ ॥ ___ कलियुग की महिमा से घटते हुए वेद गऊ द्विज और धर्म की रक्षा को सगुन शरीर जिसने धारण किया है उस अप्रमेय पुरुष अकबर शाह को हम नमस्कार करते हैं । ॥५॥ . . ___पाठक गण ! अकबर की महिमा सुनी, यह किसी भाट की बनाई नहीं है एक कट्टर कछवाहे क्षत्रिय महाराज की वर्नाई है इसी से इस पर कौन न विश्वास करैगा । उसने गोबध बंद कर दिया था यह कवि परम्परा द्वारा तो श्रुत था अब प्रमाण भी मिल गया । हिन्दू शास्त्रों को वह सुना करता था । यह तो और इतिहासों में लिखा है कि वह आदित्यवार को पवित्र समझता है । देखिए उस के इस कार्य से गायत्री के देवता सूर्य के आदर से हिन्दूमात्र उस से कैसे प्रसन्न हुए होंगे। मैं समझता हूं कि उस समय सूर्यवंशी राजा बहुत थे और सूर्य को यह सम्मान दिखा कर अकबर ने सहज उन लोगों का चित्त वश कर लिया था । योग साधने से हिन्दुओं की प्रसन्नता और शरीर की रक्षा दोनों काम हुए।
पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१७०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।